झुंझुनू का मनसा माता का मंदिर जहां कभी भी नहीं लगते ताले, चायवाला बना करोड़पति

लोक के देवी देवताओं की अपनी एक अनूठी मान्यताएं होती है।उनके पीछे की कुछ कथा रहती है, प्रसंग रहता है।ऐसा ही प्रसंग मनसा माता के पीछे रहा है।मान्यता है कि ऋषि कश्यप के मन से इस देवी का अवतरण हुआ और और इसी वज़ह से मनसा नाम पड़ा।इन्हीं मनसा माता को भगवान शिव की पुत्री, नागमाता आदि रूप में भी पूजा जाता है।झुंझुनूं की मनसा पहाड़ी पर देवी का मंदिर स्थित है।हालांकि शेखावाटी के कई अन्य स्थानों पर भी मनसा माता के मंदिर स्थित है।यह मंदिर तकरीबन तीन-साढे तीन सौ पुराना है।बताते हैं कि एक भक्त को स्वप्न में माता का हुकम हुआ कि पहाड़ी पर मापित दूरी में गुफा में खुदाई करना वहाँ एक मूर्ति मिलेगी और उसका विस्तार करना है तुम्हें।जब वहाँ खुदाई की तो एक मूर्ति निकली भूमि से।

वर्तमान मंदिर में दो मूर्तियाँ हैं एक मनसा माता का रुद्राणी रूप और तो दूसरा ब्रह्माणी रूप।निर्माण के बारे में मंदिर परिसर में पिछली चार पीढ़ियों से पूजा कर रहे पांडे परिवार वाले बताते हैं कि सबसे पहले माता खेतान परिवार में से एक बच्चे को स्वप्न में दिखी थी, दरअसल खेतान परिवार में एक बच्चा सूरदास था।तो स्वप्न में यह बताया गया कि जहां फिलवक्त मंदिर है वहाँ एक पेड़ है जिसकी पत्तियों में रस है, वह आंख में डाल दो और आप ठीक हो जाएंगे।और यह करते ही बताते हैं कि आंखों में वास्तव में रोशनी आ गयी।इसके बाद में माता के प्रति खेतान परिवार की आस्था ज्यादा बढ गयी।और फिर खेतान परिवार ने बहन के पास मूर्ति स्थापित करवा दी।

चैत्र और आसौज के नवरात्रा में अष्टमी-नवमी के दिन मंदिर में विशाल मेला भरता है।दूर-दराज से श्रद्धालु धोक लगाने आते हैं।पहले यहाँ लाइट की व्यवस्था नहीं थी, मढ ठीक से नहीं बना हुआ था जिसके कारण माता की पौशाक बदलने में भी दिक्कत आती थी।हालांकि अब लगभग सभी प्रकार की मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध हो गयी है।पहाड़ी से नीचे की ओर छोटी छोटी नालियों की व्यवस्था की गयी है, जिससे बरसात के में पानी नीचे तक चला जाता है और वहां दो बड़े कुंड बने हुए हैं, उनमें एकत्र हो जाता है।इन्हीं कुंड से मंदिर परिसर में पानी का प्रयोग होता है।बताया जाता है कि ये लगभग अठानवै साल पुराने कुंड है।माई(माता को संबोधित शब्द)की पौशाक में छ मीटर कपड़ा लगता है जो कि भक्तों द्वारा लाया जाता है, और मनोकामना पूर्ण होने की आशा लेकर वे लौटते हैं।

मंदिर में कभी ताले नहीं लगे ये एक रोचक बात है।परिसर में आरती के लिए समय निर्धारित है, घोषणा की जाती है कि एक समय में इतने ही श्रद्धालू ही आ सकते हैं।भक्तजन अपनी श्रद्धा अनुसार चढा़वा लाते हैं तो कोई पूरे नवरात्रों में अपनी ओर से धूप करने का निर्णय लेता है, और अंतिम दिन प्रसाद चढ़ाता है, प्रसाद चढ़ाने के लिए जरूरी सामग्री परिसर व्यवस्थापक को दे दी जाती है जिससे प्रसाद बना दिया जाता है।सात्विक पूजा वाले इस मंदिर में शेखावाटी के सेठों समेत लोक की गहरी आस्था रही है।

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