दो घंटे में मा’र गिराए 15 पा’किस्तानी सैनिक, ऐसे थे कारगिल शहीद हरफूल सिंह कुलहरी

कारगिल जंग में देश के जवानों ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर देश का गौरव बढ़ाया था। जवानों ने कठिन परिस्थितियों में अदम्य साहस और शौर्य का परिचय देकर पड़ोसी देश को धूल चटा दी थी।

कारगिल यु’द्ध में ऐसे ही एक शहीद शेखावाटी के झुंझुनू जिले के रहने वाले सूबेदार हरफूल सिंह कुलहरी थे जिन्होंने यु’द्ध के दौरान महज दो घंटे में 2 बंकर उड़ाकर 15 पा’किस्तानी सैनिकों को मा’र गिराया था। शहीद हरफूल सिंह 30 मई 1999 को ही श’हीद हुए।

सेना में भर्ती से पहले की नौकरी

हरफूल सिंह का जन्म 2 जून 1952 को तिलोका का बास में भागीरथ मल कुलहरी के घर हुआ था। उनकी माता का नाम झूम्मा देवी था। हरफूल सिंह ने अपने गांव से 5 किलोमीटर दूर स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय कोलिंडा से 8वीं कक्षा की पढ़ाई की।

10 मई 1968 को उनका विवाह जीत की ढाणी की सुगनी देवी के साथ हुआ। अपने शुरूआती दिनों में परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए हरफूल सिंह ने 2 साल आसाम में नौकरी की। सूबेदार हरफूल दो बेटे और एक बेटी पुत्री हैं।

आखिरकार 4 अगस्त 1971 को सूबेदार हरफूल सिंह सेना में भर्ती हुए जहां पहले वह जम्मू कश्मीर में पदस्थ हुए। 15 मार्च 1989 को नायब सूबेदार की रैंक में जेसीओ के पद पर नियुक्त हुए। सन 1993 में उन्हें सूबेदार की रैंक में कमीशन मिला।

कारगिल यु’द्ध में सीने में 3 गोलियां खाकर करत रहे दुश्मनों का सामना

कारगिल यु’द्ध 1999 में भारतीय सेना ने घु’सपैठियों को ख’देड़ने के लिए जम्मू-कश्मीर में ऑपरेशन विजय शुरू किया था। यु’द्ध में सेना की अन्य बटालियनों के साथ सूबेदार हरफूल सिंह की 17 जाट रेजीमेंट भी ऑपरेशन विजय में शामिल थी।

29 मई 1999 को सूबेदार हरफूल सिंह 17 जाट रेजीमेंट की टुकड़ी के 38 सैनिकों का नेतृत्व करते हुए मसकोह घाटी के पॉइंट 4590 चोटी पर कब्जा करने के लिए आगे बढ़े। टुकड़ी की दो घंटे तक पा’किस्तानी सैनिकों के साथ मु’ठभेड़ हुई जिसमें 15 पा’किस्तानी सैनिक मा’रे गए।

हरफूल सिंह दु’श्मनों के बंकर से 100 मीटर की दूरी पर थे तभी दु’श्मनों ने घात लगाकर अचानक अंधाधुंध फा’ यरिंग शुरू कर दी। गोलियों की गड़गड़ाहट के बीच हरफूल सिंह की टुकडी दुश्मनों पर टूट पड़ी जिसमें कई दु’श्मन ढेर हो गए औऱ इसी बीच हरफूल सिंह कुछ दु’श्मनों से घिर गए और उनके सीने पर तीन गो’ लियां लगने के बाद वह पांच साथियों के साथ श’हीद हो गए।

30 मई 1999 को सूबेदार हरफूल सिंह श’हीद हुए लेकिन बर्फ में दबने के कारण 14 जुलाई 1999 को 46 दिन बाद में उनका पार्थिव शरीर मिला। इस मु’ठभेड़ में हरफूल ने अपने साथियों के साथ 22 पा’किस्तानी सैनिकों मा’रा था।

15 जुलाई 1999 को राजकीय सम्मान से उनका दाह संस्कार किया गया जहां सेना की 123 इन्फेंट्री जवानों ने उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया।

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