भारतीय सेना के जवानों ने श’हीद परमवीर पीरुसिंह के हक की लड़ाई में कलेक्टर को सौपा ज्ञापन

झुंझुनू : राजस्थान (Rajasthan) के पहले परमवीर चक्र विजेता पीरुसिंह (Param Vir Chakra Piru Singh) के साहस और जज्बे की कहानी किसे नहीं पता। प्रथम भारत-पाक यु’ द्ध में पीरुसिंह ने अपने देश की सुरक्षा के लिए अपनी जान की कुर्बानी दे दी। उनकी इस बहादुरी पर भारत सरकार ने उन्हें परम वीर चक्र से सम्मानित किया। वही, राजस्थान सरकार (Rajasthan Government) ने उनके परिवार के नाम 5 बीघा भूमि आंवटित की और पीरु सिंह जी के जन्म स्थान पर उनके नाम का स्मारक बनावाया।

लेकिन 1987 के बाद से वहां के स्थानीय लोगों ने विभिन्न निर्माण की गतिविधियों को अंजाम देकर भूमि को आवंटित कर दिया। इस बात की जानकारी पीरु सिंह जी के परिवार वालों ने स्थानीय अधिकारियों को दी। हालांकि इस मामले में अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है और अतिक्रमण अभी भी जारी है।

शहीद पीरू सिंह जी के 5 बीघा जमीन के अतिक्रमण मामले में आज उनके परिवार के सदस्य एवं 6 राजपूताना राइ’ फ’ल्स के ऑन ड्यूटी जवानों ने डीएम को पत्र सौंपा जिसमें उन्होंने पीरू सिंह की स्मारक पर कुछ द’बंगों द्वारा हो रहे अतिक्रमण के बारे में बताते हुए कलेक्टर मोहदय से निवेदन किया कि शहीद परिवार के साथ हो रहे नाकारापन ओर उनके जमीन पर हुए अतिक्रमण के लिए जल्द से जल्द संघान लिया जाए।

 

साथ ही उन्होंने पत्र में शहीद की भूमि पर हो रहे अतिक्रमण को लेकर न सिर्फ राज्य सरकार के लिए बल्कि सम्पूर्ण भारतीय सेना (Indian Army) के लिए शर्मनाक बताया तथा जल्द से जल्द श’हीद स्मारक पर जाके मामले की जांच करने की गुजारिश की। इस मौके पर श’हीद पीरू सिंह के पुत्र ओम प्रकाश सिंह उनके पोते रविन्द्र शेखावत और सीएचएम पीरु सिंह की यूनिट के जवान, एचसीओ धर्मपाल सिंह, आरएफएन महेश सिंह जो कि गुजरात के भुज सेक्टर से चल कर इस पत्र को लेके झुंझुनूं पहुंचे। इनके अलावा 6 राजरिफ के सेवानिवृत्त कैप्टन रिशाल सिंह, कैप्टन सरदारा सिंह, सुबेदार लख्मीचंद, कैप्टन उम्मीद सिंह और सूबेदार भीम सिंह भी मौजूद रहे।

पीरु सिंह जी के बेटे की आंखों से झलके आंसू

झलको झुंझुंनू (Jhalko Jhunjhunu) की रिर्पोटर से बातचीत के दौरान पीरु सिंह जी के बेटे ओम प्रकाश की आंखों से तब आंसू झलक आए जब अपनी जुबानी अपने पिता के अपमान की कहानी उन्होंने बयां की। हमारे रिर्पोटर को उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने इस अतिक्रमण के खिलाफ आवाज उठाने कि लिए कलेक्टर से प्रधानमंत्री तक के दरवाजे खटखटाएं लेकिन हाथ कुछ नहीं लगा और अतिक्रमण जारी रहा।

जिस वीर ने देश की रक्षा के लिए अपनी जान की परवाह नहीं की आज उनकी समाधि का अपमान किया जा रहा है। ऐसे में ओम प्रकाश का ये कहना गलत नहीं है कि जिस देश को उनके पिता ने बचाया। आज उस देश की सरकार उनकी 5 बीघा जमीन को नहीं बचा पा रही हैं।

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