गौह’त्या और हिन्दुओं के लिए आवाज़ उठाने वाले खरबपति डालमिया को नेहरू सरकार ने भेजा था जेल

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हिंदुस्तान का राजस्थान एक ऐसा राज्य है जिसके रहने वाले लोगो में हर क्षेत्र में अपना योगदान दिया है। राजस्थान के लोगो ने व्यापार के क्षेत्र में भी सबसे ज्यादा योगदान दिया है। देश के सबसे धनी व्यक्तियों में बहुत सारे लोग तो राजस्थान राज्य से आने वाले थे। और आज भी कही न कही राजस्थान के लोग देश की तरक्की में, विकास में हर क्षेत्र से अपना योगदान दे रहे है। इन्ही में से सबसे धनी व्यक्तियों में से एक और देश की आजादी से पहले और बाद तक जिन्होंने देश के तरक्की में योगदान दिया उनका नाम रामकृष्ण डालमिया।

सेल्समेन से मालिक तक का सफर

आज हमको रामकृष्ण डालमिया के बारे में आपको बताए तो उनका जन्म राजस्थान के झुंझुनू जिले के चिड़ावा में बनिया यानी अग्रवाल परिवार में हुआ था। पढाई की बात करे मामूली शिक्षा प्राप्त करके वह अपने मम के यहां कोलकत्ता चले गए थे। कोलकत्ता में जाकर उन्होंने बाजार में एक दुकान पर जाकर काम करना शुरू कर दिया। दुकान पर वह सेल्समेन के टूर पर काम करते रहे। डालमिया साहब ने अपने जीवन में बहुत मेहनत की,वो कहते है न कि मेहनत का फल मीठा होता है। डालमिया को भी उनके मेहनत का फल मिला।

कई क्षेत्रों में फैला व्यापार

डालमिया ने जो मेहनत कोलकत्ता में सेल्समेन के तौर पर कि थी वही मेहनत उनके काम आई। बाद में डालमिया का अपना व्यापार कई क्षेत्रों में फैला उनका व्यापार समाचार पत्र,बैंक.बीमा कम्पनीज,विमान सेवाएं,सीमेंट,वस्त्र उद्योग,खाद्य पर्दार्थो व अन्य कई बड़े बड़े क्षेत्रों में फैला था।

कटटर हिन्दू छवि वाले थे डालमिया

रामकृष्ण डालमिया ने देश के कई विकास कार्यों में सहयोग दिया। उन्होंने हमेशा से आर्थिक मदद की,कई नेताओं को भी आर्थिक मदद करते थे। वह हमेशा जनकल्याण के कार्यों में भी आगे रहते थे। साथ ही बताय जाता है की रामकृष्ण डालमिया कट्टर हिन्दू छवि वाले थे इसी वजह से कई बार उनकी सत्ताधारी सरकार से भी नहीं बनती थी।

हिन्दू कोड बिल का किया खुल कर विरोध

डालमिया ने हिन्दू कोड बिल व गौह’त्या को रोकने के लिए तमाम प्रयास किये। इसके लिए उन्होंने सरकार का भी खुल कर विरोध किया। डालमिया स्वामी करपात्री के साथ मिल कर सत्ता के खिलाफ खुल कर बोले थे। जिसका नतीजा उन्हें बहुत बुरा झेलना पड़ा। हिन्दू कोड बिल में हिन्दू महिलाओ के तलाक के बारे कुछ बाते थी। यही वजह थी वजह से डालमिया और स्वामी करपात्री जी विरोध में थे।

आंदोलन कर रोकने का प्रयास लेकिन हुआ असफल, राष्ट्रपति भी थे विरोध में

जिस बिल के विरोध में डालमिया और स्वामी जी खड़े थे। खुद उसके बिल के विरोध में उस वक्त के और देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंदर प्रसाद भी थे। स्वामी करपात्री ने बिल के विरोध में अनशन पर बैठने का फैसला किया। उस अनशन को डालमिया ने आर्थिक मदद के साथ खुद अनशन का हिस्सा बने थे। लेकिन उस वक्त यह बात नेहरू सरकार को पसंद नहीं आई और उन्होंने विरोद के बावजूद भी लोकसभा और राजयसभा से पारित करके राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के पास भेज दिया। राजनितिक दवाब या जाने क्या दवाब रहा उस वक्त महामहिम राष्ट्रपति पर,जिस बिल का वो विरोध कर रहे थे उस बिल पर उन्हें हस्ताक्षर करने पड़े और वह कानून लागू हो गया।

बदले की आग में डूबा दिया डालमिया को

नेहरू सरकार का विरोध कर रहे रामकृष्ण डालमिया ने आमरण अनशन करने का फैसला लिया। नेहरू सरकार ने डालमिया पर बाद में घोटालों का आरोप लगाना शुरू कर दिया। बताया जाता है की सरकार ने उस वक्त डालमिया की कम्पनियो पर प्रहार किया। उन पर घोटालो का आरोप लगया गया। जाँच करने के लिए सरकार ने विपिन आयोग बनाया। बाद में जाँच पुलिस टीम को दे दी गई। डालमिया को कुछ बेबुनियादी और झूठे आरोपों में पूरी तरह फसाया गया था।

इसका असर यह हुआ की जो डालमिया उस वक्त के सबसे धनी व्यक्तियों में थे उन्हें अपने कई व्यापारिक चीज़ो को बड़े सस्ते दामों में बेचना पड़ा। रामकृष्ण डालमिया ने अपनी कंपनी टाइम्स ऑफ़ इंडिया,हिंदुस्तान लिवर, व कई अन्य उद्योगों को बेचना पड़ा।

जेल में कई साल बिताए

रामकृष्ण डालमिया के ऊपर केस चल्या गया। उन्हें कई आरोपों में अदालत ने दोषी पाया जिसकी वजह से अदालत के फैसले से रामकृष्ण डालमिया को तीन वर्ष का कारावास झेलना पड़ा था।
धार्मिक,समाजिक हर तरह से समाज व देश की तरक्की में योगदान देने वाले डालमिया जी को अंत के कुछ साल कालकोठरी की सजा झेलनी। रामकृष्ण बड़े धार्मिक व्यक्ति थे। जब उनके दिन सही थे तब उन्होंने कई जगह दान पुण्य करके जनकल्याण में हाथ बढ़ाया था। अंतिम दिनों में अन्न न ग्रहण करने की जिद्द पर बैठे रामकृष्ण डालमिया ने 1978 में प्राण त्याग दिए दे।

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