अमर श’हीद अजय सिंह, आतं’कियों से लोहा लेते हुए अपने साथी को बचा गए ~ कहानी वीरता की

“देश सेवा का जज्बा हो दिल में,
तो पढ़ाई चाहे कैसी हो।
खेत जोते किसान का बेटा,
तो ट्रैक्टर चाहे मैसी हो।”

दोस्तों शेखावाटी के जर्रे जर्रे में देश के प्रति जज्बे को कौन नहीं जानता। भारत में शेखावाटी का नाम गर्व से लिया जाता है। ऐसे ही जज्बा धारी शेखावाटी के सपूत, किसान पुत्र,सेना मेडल से सम्मानित शहीद अजय सिंह चौधरी का जन्म 25 जुलाई 1992 को झुंझुनू सीकर मार्ग पर स्थित ढिगाल गांव में रघुवीर सिंह के घर माता विमला देवी की कोख से हुआ था। तीन भाई बहनों में अजय सिंह दूसरे नंबर पर था। बड़ी बहन अनीता तथा छोटा भाई अंकित है। अजय सिंह के पिताजी राजस्थान सरकार के अधीन शिक्षा विभाग में अध्यापक के पद पर कार्यरत है।

शिक्षा: प्राथमिक शिक्षा अपने पिताजी के साथ भीलवाड़ा से प्राप्त करने के बाद अजय सिंह ने माध्यमिक शिक्षा ढीगाल से तथा 12वीं कक्षा झुंझुनू से पास की। अजय सिंह विज्ञान वर्ग का विद्यार्थी होने के उपरांत भी सेना में सेवाएं देने का निश्चय किया।
” होनहार बिरवान के होत चिकने पात” उक्त कहावत को चरितार्थ करते हुए अजय सिंह ने अपने प्रथम प्रयास में ही सेना में आर्मी टेक्निकल के पद पर स्थान पक्का किया।

शादी: शहीद अजय सिंह की शादी सोना सर गांव में राम प्रताप जी महला की बेटी मीना के संग 25 दिसंबर 2013 को हुई थी। शहीद के 5 वर्ष का एक लड़का है।

देश सेवा: अजय सिंह सिंगल रेजीमेंट 56 राष्ट्रीय राइफल में जम्मू कश्मीर के राजोरी के मछल सेक्टर में तैनात थे। 2 अगस्त 2010 को आर्मी टेक्निकल कोर में बीकानेर रैली में भर्ती होने के बाद 18 महीने जबलपुर में ट्रेनिंग की तथा प्रथम पोस्टिंग रांची में मिली।

शहीद एवम् सम्मान:

खुद की जान बचे ना बचे,
साथी की बचनी चाहिए।
पर सेवा का मौका दो मां,
तेरी कुख तरनी चाहिए।

शहीद अजय सिंह जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा में तैनात थे। अजय सिंह ने अपने एक साथी की जान बचाई लेकिन खुद की नहीं बचा पाया। शहीद होने से पहले अजय सिंह ने दो आतं’कवा’दियों को मौत के घाट उतारा। उसकी इस बहादुरी के कारण ही सेना के दो जवान बच गए।
इस प्रकार कुपवाड़ा इलाके में हुए आतंकी हमले में 14 जून 2016 को शेखावाटी का यह लाल शहीद हो गया।

राज्य सरकार द्वारा किए गए वादे:
1 सड़क निर्माण का ना होना।
2 झुंझुनू में लगाए गए शहीद के बोर्ड को
मुख्य मार्ग पर ना लगाना।

उक्त दोनों कार्य संबंधित अधिकारी बार-बार करने को कहते हैं लेकिन करते नहीं है। जोकि शहीद का अपमान है।

लेखक “विद्याधर तेतरवाल” की कलम से
प्रेरणा के स्रोत बने तुम,
गांव का नाम रोशन किया।
देने का जज्बा तुम्हारा,
तुमने किसी से कुछ ना लिया।

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