शेखावाटी की कद्दावर और दबंग महिला नेत्री सुमित्रा सिंह के जीवन की दिलचस्प बातें, राजनीति का सफर

आज मैं आपको राजस्थान विधानसभा की पहली महिला अध्यक्ष दबंग महिला नेत्री सुमित्रा सिंह के जीवन के बारे में बताऊंगा। श्रीमती सुमित्रा सिंह किसारी गांव के चौधरी गणेशाराम के घर चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी थी। सुमित्रा सिंह का जन्म 3 मई 1930 को हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा का पूरा कार्य उनके चाचा जी श्री लादूराम जी की देखरेख में हुआ। लादूराम जी पक्के आर्य समाजी थे। उन्होंने सुमित्रा को गोद ले लिया और शिक्षा हेतु वनस्थली भेज दिया। वह महिला शिक्षा के प्रबल समर्थक थे।

सुमित्रा सिंह की पूरी शिक्षा वनस्थली विद्यापीठ में संपन्न हुई। शेखावाटी से इनके साथ सरदार हरलाल सिंह की चारों पुत्रियां थीं।कमला बेनीवाल, सुधा जी , ज्ञान बाई तथा हरिराम जी खारिया की लड़कियां साथ में शिक्षा ग्रहण करने में थी। 1938 में श्री लादूराम जी ने अपनी पुत्री सुमित्रा सिंह को वनस्थली भेज कर नारी शिक्षा को बढ़ाने की पहल की। सुमित्रा सिंह में एक अलग विशेषता थी कि वह घुड़सवारी में माहिर थी तथा दौड़ते घोड़े पर चढ़ना उनकी कला थी। तैराकी में भी उनको महारथ हासिल थी तथा चार पांच घंटे तक पानी में तैरना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी।

ऊंची शिक्षा ऊंचा जज्बा, समाज में स्थान बना गया। महिलाओं का हौसला बढ़ाया था, नेताओं की नींद उड़ा गया।

विवाह: दूसरी विधानसभा 1957 की जीत के साथ ही सुमित्रा सिंह का विवाह पातुसरी के श्री नाहर सिंह जी के साथ संपन्न हुआ। गत वर्ष कोरोना काल में श्री नाहर सिंह जी का 93 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। पूरे जीवन काल में श्री नाहर सिंह जी साए की तरह है सुमित्रा सिंह के साथ रहे।

आर्य समाजी पीहर देखा, वैसा ही ससुराल। राजनीति के अखाड़े में, बन बैठा था वो ढाल।

राजनीतिक जीवन: सुमित्रा सिंह राजस्थान विधानसभा की प्रथम महिला अध्यक्ष है। वह भारतीय जनता पार्टी की नेत्री है। वह सन 1957 में पिलानी से अखिल भारतीय कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर पहली बार विधायक बनी। उसके बाद वह सन 1962 से लगातार चार बार झुंझुनू से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंची। सन 1985 में इंडियन नेशनल लोकदल, सन 1990 में जनता दल प्रत्याशी के रूप में फिर पिलानी से तथा वर्ष 1998 में निर्दलीय एवं वर्ष 2003 में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर झुंझुनू से विधायक बनकर अब तक 9 बार विधायक बनने का गौरव हासिल कर चुकी है। वह 2004 में 12वीं विधानसभा की अध्यक्ष बनी।

2013 में सुमित्रा सिंह को भाजपा द्वारा टिकट नहीं दिए जाने के कारण निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरी और सुमित्रा सिंह को बागी करार करते हुए पार्टी से निष्कासित कर दिया। सन 2018 के चुनाव में सुमित्रा ने ऐन वक्त पर भाजपा का साथ छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया और इस प्रकार भाजपा को बहुत बड़ा झटका दिया।

लेखक की कलम से:

नौ बार की नेत्री ना कोई गर्व गुमान था, विकाश की डोर जहां से दिखती उधर लगाई रेस। महिला शिक्षा में आगे आई, दिया समाज को संदेश।

विद्याधर तेतरवाल, मोती सर।

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