एक ही परिवार की 3 धाकड़ छोरियां सुनीता अनीता और कृष्णा, हौसले और जज़्बे से किया देश का नाम रोशन

यह कहानी हमारे चैनल की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट है चलिए शुरू करते हैं। आज हम आपको एक प्रेरणादायक कहानी बताएंगे। कहानी है राजस्थान के झुंझुनू जिले के ककराना गांव की रहने वाली कुमावत परिवार की तीन बेटियों की। तीनों ही बेटियों ने अपने-अपने क्षेत्र में अपने गांव और राजस्थान का नाम पूरे देश में रोशन कर दिया है। सबसे पहले बात करें तो परिवार की सुनीता, कृष्णा और अनिता कुमावत की, सुनीता और अनिता कुमावत राजस्थान की टीम से रग्बी का खेल खेलते हैं।

अपने खेल जीवन की शुरुआत के लिए वे बताती हैं कि उन्होंने श्री भवानी निकेतन कॉलेज, जयपुर में जाकर खेलना शुरू किया। गांव में उनका खेल आगे नहीं बढ़ पाता इसलिए वह लोग जयपुर चले गए। सबसे पहले उन्होंने कबड्डी खेलना शुरू किया, जिसके बाद में हैंडबॉल का गेम देखा और उनकी रूचि उस तरफ बढ़ने लगी। हैंडबॉल के प्रतियोगिता के बाद 14-15 दिन की छुट्टियां पड़ गई और उन लोगों को रग्बी खेल के बारे में पता लगा। बस पता लगते ही दोनों बहनों की रूचि बढ़ गई इस खेल को खेलने का दोनों ने ठान लिया।

बर्फीले मैदान में जाकर जीत कर ली सिल्वर मेडल : सुनीता और अनीता बताती है कि उनके पिता जी का सपना था कि उनके बच्चे खेलों में अपना भविष्य बनाएं। उनके पिता अपनी जवानी के दिनों में खुद खिलाड़ी बनना चाहते थे, लेकिन आर्थिक तंगी की वजह से खेल नहीं खेल पाए। बस अब अपने पिता का सपना पूरा करने निकली है, उनकी दोनों बेटियां सुनीता और अनिता कुमावत। दोनों बहने बताती हैं कि वह पहला रग्बी मैच बड़ी बुरी तरीके से हार गए। जिसके बाद आकर उन्होंने 6 महीने की प्रैक्टिस और ट्रेनिंग की थी। फिर जम्मू कश्मीर में जाकर बर्फीले मैदान में राजस्थान के लिए सिल्वर मेडल जीता। तीन मैच उनके ड्रा हो गए और अंतिम मैच में उन्होंने इस सिल्वर पदक पर अपना बना लिया। जम्मू कश्मीर में इन दोनों खिलाड़ियों के साथ पूरी टीम को खेलने में थोड़ी दिक्कत आई। दरअसल बर्फ में ऑक्सीजन की बेहद कमी थी और घास के ग्राउंड से सीधा बर्फ की ग्राउंड में जाकर खेलना खिलाड़ियों के लिए चुनौतीपूर्ण था। फिर भी राजस्थान के खिलाड़ियों ने अपने जोश और हिम्मत से सिल्वर मेडल जीता। इसके अलावा दोनों बहनों ने अपनी टीम के लिए कई प्रतियोगिताओं में जाकर बेहतरीन प्रदर्शन किया है।

परिवार करता है पूरा सपोर्ट : सुनीता और अनिता कुमावत बताती हैं कि उनके परिवार की तरफ से उन्हें पूरा सपोर्ट मिलता है। अपने आर्थिक तंगी को दूर करने के लिए वह लोग अपने पारिवारिक आचार के बिजनेस में भी मां का हाथ बटाती हैं। वह खुद भी सिलाई करती हैं। बड़ी बहन बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती है। जिससे वह खुद अपना खर्चा निकाल सकें। सरकार की तरफ से उन्हें ज्यादा मदद नहीं मिलती। टूर्नामेंट खेलने के लिए किट की आवश्यकता पड़ती है। जिसको भी वह खुद अपने पैसों से खरीदी है, वह बताती हैं कि उनके पापा उन्हे बहुत मदद करते हैं।

चली गई याददाश्त नहीं हारी हिम्मत : सुनीता कुमावत ने बताया कि एक बार चेन्नई में उनका एक टूर्नामेंट हुआ जिसके बाद उनको चोट लग गई। चोट इतनी भयानक थी कि उनकी 2 दिन तक याददाश्त भी चली गई। लेकिन फिर भी उन्होंने अपने खेल के जज्बे को कम नहीं होने दिया। वह बताती है कि हरियाणा और उड़ीसा टीम के एक मुकाबले में एक खिलाड़ी का कंधा अपनी जगह से हिल गया। जिसके बाद उनकी मां डर गई और अपनी बेटियों को चिंता करने लगी। उन्हें खेलने से मना कर दिया, लेकिन दोनों बहनों ने अपनी मां को समझाया और बताया कि खिलाड़ी को चो’ट लगना तो आम बात है। जो खिलाड़ी चोट से हार जाए वह विपक्षी से कैसे जीत पाएगा। फिर दोनों बहने दोबारा पूरे जोश और जज्बे के साथ खेलना शुरू कर दिया।

अनिता कुमावत ने बताया कि एक बार ग्राउंड में खेलते हुए उनके पैर में चो’ट लग गई। डॉक्टर को दिखाने पर डॉक्टर ने उन्हें पल’स्तर बांधने की सलाह दी, लेकिन अनीता का कहना था कि 15 दिन बाद उनका टूर्नामेंट है और अगर पल’स्तर से बांध दिया गया तो वह अपनी टीम के लिए नहीं खेल पाएंगी। जिसके बाद अनीता ने उस दर्द को सहकर पे’न कि’ लर दवाई को लेकर प्रतियोगिता में हिस्सा लिया, उनकी टीम ने अच्छा प्रदर्शन भी किया। जब परिवार ने कहा कि चो’ट कैसी है तो उन्होंने कहा कि एक आम चोट है दो-तीन दिन में ठीक हो जाएगी। लेकिन 20 दिनों तक भी चोट ठीक ना होने के बाद उनके पिता ने उन्हें डॉक्टर के पास ले के गए तो, डॉक्टर ने कहा कि हमने तो आपको पलस्तर बांधने की सलाह दी थी। आप पेन कि’ लर दवाई लेकर मैदान में उतर गई, आपके जज्बे को सलाम। इसके बाद उनके पिता ने उन्हें थोड़ा हमको डांटा और कहा कि अपने शरीर का ध्यान रखो तभी मैदान में अच्छा प्रदर्शन कर पाना मुमकिन हैं। अनीता ने उस चोट से उबर कर मैदान में फिर वापसी की और टीम के लिए लगातार मेहनत करती हुई नजर आ रही है।

छोटी बहन भी बॉल बैटमिंटन खेल में कर रही हैं कमाल: अनीता और सुनीता कुमावत की बहन कृष्णा कुमावत बॉल बैडमिंटन खेल में एक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बन चुकी है। वह बताती है कि 2018 में उन्होंने इस खेल को खेलना शुरू किया, उनको अपनी दोनों बहनों से खेलने की प्रेरणा मिली। साल 2018 में उन्होंने नेशनल स्तर पर तमिलनाडु में जाकर प्रतियोगिता खेली और उस प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता। इसके बाद उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नेपाल में जाकर प्रतियोगिता खेली बिहार में ट्रेनिंग पूरी करने के बाद उनकी टीम नेपाल में गई और वहां जाकर गोल्ड मेडल जीता। कृष्णा कुमावत अब तक टीम के साथ तीन गोल्ड मेडल जीत चुकी है। कृष्णा बताती हैं कि गोल्ड मेडल जीतने के बाद लोगों ने उनका बहुत अच्छी तरीके से स्वागत किया। लोग उनके साथ सेल्फी ले रहे थे, लोग उनके ऑटोग्राफ भी मांग रहे थे।

सीएम गहलोत ने भी की प्रशंसा : कृष्णा ने बताया कि उन्हें उनकी उपलब्धि के लिए मुख्यमंत्री गहलोत ने भी सम्मानित किया है। इसके अलावा साल 2021 में 12वे नेशनल अवार्ड में उन्हें सम्मानित किया गया। दिल्ली में आयोजित इस समारोह में प्रियंका चोपड़ा समेत कई बॉलीवुड के सितारे आए थे। कृष्णा कुमावत को भी इस कार्यक्रम में सम्मानित किया गया था। वही कृष्णा कुमावत ने बताया कि वह राजस्थान में माउंट आबू में 8622 फीट पर चढ़ाई कर चूंकि है। उस दौरान वह दूसरे नंबर पर आई थी। इसके अलावा कृष्णा कुमावत लगातार अपने खेल की और मेहनत कर रही है और उनका सपना है कि वह देश के लिए और कई सारे गोल्ड मेडल लेकर आए।

लड़कियाँ करे मेहनत बनाए खुद का मुकाम : कुमावत परिवार की तीनों बेटियां लड़कियों को प्रेरणा देकर कहती है कि हमें जीवन में आगे बढ़ने के लिए खुद आगे आना पड़ेगा। परिवार से सपोर्ट हर किसी को नहीं मिलता अगर आपको जीवन में आगे बढ़ना है तो अपना लक्ष्य निर्धारित करना पड़ेगा। अपने लक्ष्य की ओर मेहनत करनी पड़ेगी, मोबाइल फोन में गेम खेलने से भारत के लिए गोल्ड मेडल नहीं आ सकता। आप ग्राउंड में निकल कर के शरीर को स्वस्थ रख सकती है। देश का भी नेतृत्व कर सकती हैं।

हमारे चैनल से एक्सक्लूसिव बात करते हुए तीनों बहनों ने बताया कि वह देश के लिए कई मेडल लाना चाहती हैं। अपने गांव, अपने राज्य और देश का नाम रोशन करना चाहती हैं। इसके लिए लगातार तीनों बहने मेहनत कर रही है।

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