उबली वाले बालाजी के चमत्कार से गाँव में एक भी फौजी नहीं हुआ शहीद, देशी कहानी और अनोखी परम्परा

आज आपको कहानी बताएंगे राजस्थान के झुंझुनू जिले के उदयपुरवाटी में स्थित उबली वाले बालाजी की। राजस्थान के झुंझुनू जिले में उबली वाले बालाजी का इतिहास बेहद खास है। यहां से जुड़े किस्से भी बेहद खास है। हमारे चैनल की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में पुजारी जी ने बातचीत करके उबली वाले बालाजी से संबंधित सभी सवालों का जवाब दिया आपको बताएं पुजारी जगदीश प्रसाद जी ने बताया कि उबली वाले बालाजी का नाम एक खास कारण से पड़ा था।

उन्होंने बताया कि गांव में एक कुआं था जिसकी नाल ऊंची थी और गांव में ऊंचे को उबड़ा कहा जाता था। इसलिए बालाजी के मंदिर होने की वजह से इनका नाम उबली वाले बालाजी पड़ गया। पुजारी जी बताते हैं कि मंदिर में आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। बालाजी सभी भक्तों की हर इच्छा पूरी करते हैं। इसके अलावा उन्होंने बताया कि लगभग 150 साल पहले गांव में कुआं बना था। जिसके बाद गांव में स्थित मंदिर का नाम उबली वाले बालाजी पड़ गया था।

जब गाँव में उबली वाले बालाजी की मूर्ति जमीन से निकली तब से यहाँ के स्थानीय निवासी बजरंग बलि जी की पूजा करने लगे थे। लोकल लोगों की आस्था के अनुसार जो भी बाबा से मांगो वो इच्छा पूरी हो जाती है। लोक कथाओं के अनुसार सम्वत 1949 में एक ठाकुर था जिसके अच्छी फसल नहीं हुई तो उसने उबली का बालाजी से इच्छा मांगी की अगर मेरी इस बार अच्छी फसल होगी तो बाबा तेरे नाम की सवामणी करूंगा। फिर क्या था भगवान जी ने भक्त की इच्छा सुनी और ठाकुर को इस बार बहुत मुनाफा हुआ लेकिन ठाकुर सवामणी करना भूल गया तो बालाजी महाराज रुष्ट हो गए।

तब ठाकुर ने बालाजी के सामने बैठकर बोलै महाराज “मेरे पास तो पिंडी (चूरमा) नहीं है”। चमत्कारिक रूप से बालाजी की मूर्ति से आवाज आयी की “ठाकर मेरे पास भी तेरे लिए गोजरी नहीं है।” जिसके बाद ठाकुर का सारा धन खत्म हो गया। स्थानीय भाषा में गोजरी : जौ और गेहूं का मिश्रण

प्रसाद घर ना लाने की है प्रथा

साथी पुजारी जी ने मंदिर को लेकर एक रोचक किस्सा भी बताया, इस मंदिर में आने वाले किसी भी भक्तों को घर पर प्रसाद ले जाने की प्रथा नहीं है। उन्होंने इससे जुड़े इतिहास को लेकर बताया कि एक बार एक ठाकुर परिवार ने सवामणी का प्रसाद चढ़ाया था। प्रसाद चढ़ाने से पहले दो ठाकुरों ने आपस में प्रसाद को आधा-आधा बांट लिया और ऊंट की पीठ पर लाद दिया। वह बताते हैं कि रास्ते में ही वह ऊंट मर गया। जिसके बाद दोनों ठाकुर प्रसाद की हांडी को बालाजी के यहां छोड़ कर भाग उठे थे। उन्होंने बताया जाता है कि इसी के बाद किसी भी भक्तों को घर पर प्रसाद ले जाने की प्रथा नहीं है।

इसके अलावा पुजारी जी ने बताया कि एक आदमी भी बालाजी के दरबार से प्रसाद लेकर घर चला गया था। उसके बाद उस व्यक्ति को दिखना बंद हो गया था। बाद में उस व्यक्ति ने वापस आकर बालाजी के दरबार में प्रसाद चढ़ाया तब उसे दिखना शुरू हुआ।

दही चढ़ाने की भी है प्रथा

पुजारी जी ने बालाजी के दरबार में दही चढ़ाने से जुड़े इतिहास के बारे में बताया कि यहां औरतें मन से दही चढ़ाती है। उन्होंने बताया कि किसी पुजारी द्वारा ऐसी कोई कथा नहीं बताई गई कि बालाजी को दही चढ़ाना चाहिए। पुजारी जी ने बताया कि लोग अपनी गाय भैंस संबंधित भी यहां मन्नते मांगते हैं जिसके बाद बताया जाता है कि उसके दूध से निकले दही को यहां चढ़ाते हैं।

सवाल : आपके यहाँ लोक देवता या भगवान जी को दही चढाने की परम्परा को क्या कहते है ? कमेंट बॉक्स में जरूर बताये

दूर दूर से आते गई श्रद्धालु

पुजारी जगदीश प्रसाद जी ने बताया कि बालाजी के दरबार में दूर-दूर से लोग पूजा करने आते हैं। उन्होंने बताया कि गांव के अलावा आसपास के कई गांवों से लोग आते हैं। इसके अलावा विदेश में रह रहे राजस्थान के लोग भी बालाजी के दरबार में मत्था टेकने आते हैं।

एक भी फौजी नही हुआ शहीद

पुजारी जी ने बालाजी के दरबार जुड़ा एक खास के सभी बताया,उन्होंने बताया कि उनके गांव के रहने वाले लोगों का आज तक किसी बीमारी के चलते निधन नहीं हुआ है। इसके अलावा उन्होंने बताया कि गांव के जो लोग सेना में भर्ती है वह आज तक शहीद नहीं हुए है। गांव के पुलिस विभाग में भर्ती लोग, फौजी व अन्य सभी लोग बालाजी के दरबार में मुरादें लेकर आते हैं। पुजारी जी ने बताया कि कोरोनावायरस महामारी के दौरान भी एक भी व्यक्ति की मृत्यु इस गांव में नहीं हुई है। गांव में सभी लोग कोरोनावायरस से सुरक्षित है, बालाजी की कृपा से इस गांव में कोरोना नहीं आया है।

ऊबली के बालाजी (Ubali Ka Balaji) आस पास के झुंझुनू के इलाकों में भगवान जी और कुलदेवता के रूप में भी पूजे जाते हैं। जिले की बात करे तो बड़े बड़े नेता जैसे सांसद शीशराम जी ओला और स्थानीय विधायक शिवनाथ जी गिल आदि के झड़ुले (बाल) यहाँ अर्पित किये गए थे। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार झड़ुले की परम्परा में अपने इष्ट देव को अपने बच्चो के बाल अर्पित किये जाते है।

लाहौर की मूर्ति है मौजूद

आपको पता है कि मंदिर के लिए कई बड़े-बड़े लोगों ने दान किया है। लोगों के द्वारा दान से मंदिर भवन को शानदार बनाया गया है। बताया जाता है कि आजादी से पहले सेना में एक गांव का व्यक्ति भर्ती हो गया था। जिसके बाद उसे लाहौर में किसी कारण वश पकड़ लिया गया। इसके बाद वहां उसने बालाजी की एक मूर्ति देखी और मन्नत मांगी थी। उसने मांगा कि अगर उसे जेल से छोड़ दिया जाता है तो वह लाहौर से बालाजी की मूर्ति को अपने गांव लेकर आएगा। वह मूर्ति उबली वाले बालाजी के मंदिर में स्थापित करेगा। इसलिए वहां उस सैनिक के द्वारा लाई गई मूर्ति भी मौजूद है।

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