शहीद विक्रम सिंह शेखावत की शहादत पर किये वादे रहे अधूरे,दर्द से कहराते शहीद के बच्चे व वीरांगना

झुंझुनू के लाल शहीद विक्रम सिंह शेखावत को कौन नहीं जानता, उनकी बहादुरी और वीरता और देश के लिए प्राणों की आहुति देने का जज्बा हर इंसान ने महसूस किया है। जब इस वीर सैनिक ने देश के लिए अपनी शहादत दी तब पूरे जिले में शौक की लहर थी और सबकी ज़ुबान पर बस शहीद विक्रम सिंह शेखावत का नाम। इनकी शहादत पर जनता और नेता गण ने अपनी संवेदना प्रकट की और परिवार की मदद के लिए वादे किये

लेकिन अब विक्रम सिंह जी की शहादत के इतने दिन बीत जाने के बाद भी बस अधूरे वादे और परिवार का दर्द। वैसे तो पूरी दुनिया को पता है कि देश की रक्षा करते हुए हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहुति देने में शेखावाटी का पूरे देश में सबसे ऊपर नाम है। हमारे देश में शहीद का दर्जा बहुत ऊंचा है तथा शहीद की पूजा की जाती है। आज हम आपको शेखावाटी के लाडले भोड़की निवासी शहीद विक्रम सिंह शेखावत की जीवनी और उनके जाने के बाद उनके परिवार का दर्द, उनकी पत्नी और बच्चों की दर्द भरी दास्ताँ के बारे में बताएंगे। विक्रम सिंह का जन्म 11 मई 1984 को घीसा सिंह शेखावत के घर माता प्रेम कंवर की कोख से हुआ था।

छ भाई बहनों में सबसे छोटा विक्रम सिंह सबका लाड़ला था। पांच भाइयों ने सबसे बड़े कान सिंह, प्रभुसिंह, रोहिताश सिंह, भवानी सिंह हैं।विक्रम सिंह सबसे छोटे थे। कान सिंह से छोटी नीना कंवर बहन है।

“शोर्य संवर जाता है शहादत के आवेश में, शहीद पूजा जाता है हमारे इस देश में।”

शादी एवम् परिवार : विक्रम सिंह की शादी पावटा निवासी तेज सिंह चौहान की पुत्री प्रिया कंवर के साथ 13 फरवरी 2009 को हुई थी। उनके दो पुत्र हैं जिनमें बड़ा हर्ष छठी कक्षा में तथा छोटा मानवेंद्र प्रथम कक्षा में पढ़ रहे हैं।

सेवा कार्य: विक्रम सिंह अपने गांव भोड़की से 12वीं कक्षा पास करते ही 2002 में सेना में भर्ती हो गए। वे 90 आर्म्ड रेजीमेंट में लांस नायक के पद पर लद्दाख में कार्यरत थे।
अनेकों बार सीमा पर हुई मु’ठभेड़ों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने वाले विक्रम सिंह पेट्रोलिंग के समय टैं’क पलटने से एक बड़े हादसे का शिकार हो गए। जिसमें वे 27 फरवरी 2021 को शहीद हो गए।

परिवार की व्यथा: बड़े भाई कान सिंह का कहना है कि दो भाई विदेश में मजदूरी करते हैं तथा एक भाई जयपुर में रहता है तथा मैं घर पर रहकर पूरे परिवार की साल संभाल करता हूं। कहीं भी विक्रम सिंह के काम के लिए जाना पड़ता है तो दौड़ कर जाता हूं लेकिन अभी तक कोई भी काम नहीं हुआ है तथा ना ही कोई प्रशासन का या राजनीति का व्यक्ति घर पर आया है।

विक्रम सिंह के दोनों बच्चे अपने जयपुर वाले ताऊजी से बहुत ज्यादा लगाव रखते हैं। वह ताऊजी बहुत ही भयंकर वेदना से गुजर रहा है। सब घर वालों को उसका भी ध्यान रखना पड़ रहा है। मम्मी और पापा हमारे पूरे परिवार के लिए बहुत ही चिंतित हैं। एक औरत को तो विक्रम सिंह की वीरांगना प्रिया कंवर की देखभाल के लिए 24 घंटे रहना पड़ता है।

“फोटो खिंचवाने की होड़ मची थी, ये खेल नया प्रशासन का। कोई किसी के काम ना आता, यह काम है केवल भाषण का।”

लेखक की कलम से : श्रीमान सांसद महोदय, विधायक महोदय ,मंत्री गण एवं समस्त प्रशासन के अधिकारियों से नम्र निवेदन है कि शहीद का काम सबसे पहले पहली वरीयता में किया जाए।

“जिसके घर से मानुष जाए, खाली सा हो जाता है। रोम रोम से आह निकलती, दिल जाली सा हो जाता है।” ::  विद्याधर तेतरवाल, मोती सर।

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