छात्रों की बुलंद आवाज है रविंद्र सिंह भाटी, 57 साल बाद निर्दलीय अध्यक्ष बन रचा था इतिहास

राजस्थान के विश्वविद्यालयों में राजनीति की चौसर हमेशा बिछी रहती है, यहां के गलियारों कई राजनीतिक शख्सियतों के संघर्ष की कहानियां लिखी हैं.  राजधानी जयपुर का राजस्थान यूनिवर्सिटी हो या पश्चिमी राजस्थान का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय हर आंगन ने देश और प्रदेश की राजनीति में झंडे गाड़ने वाले कई नामों को परखा है।

इन दिनों जोधपुर के जेएनवीयू के निर्दलीय पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष रविंद्र सिंह भाटी चारों तरफ छाए हुए हैं, अपने तेज तर्रार रवैये और छात्रों के हितों में भिड़ जाने के अंदाज से भाटी हर किसी की चर्चा में है। जेएनवीयू में हाल में हुए फीस आंदोलन के दौरान भी रविन्द्र सिंह छात्रों के साथ पहली लाइन में खड़े दिखे।

अपने कार्यकाल में लगातार रविंद्र सिंह भाटी विश्वविद्यालय में रुके हुए या अटके हुए कामों को करवाने के लिए कुलपति या प्रशासन के सामने खड़े नजर आए हैं। जमीन के आंदोलनों से निकलकर विश्वविद्यालय में छात्र हितों के लिए लाठियां खाने वाले भाटी का यहां तक का सफर कैसा रहा आइए एक नजर डालते हैं।

57 साल बाद बना था कोई निर्दलीय अध्यक्ष

बाड़मेर जिले से निकलकर पश्चिमी राजस्थान की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के अध्यक्ष पद पर पहुंचने वाले रविंद्र सिंह भाटी 57 साल बाद यहां पहुंचे निर्दलीय उम्मीदवार बने।

बाड़मेर जिले की सरहदी तहसील के दुधोड़ा गांव में 3 दिसंबर 1990 को भाटी का जन्म हुआ। अपनी शुरूआती पढ़ाई मयूर नोबल्स एकेडमी बाड़मेर से पूरी करने के बाद मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय से इन्होंने कानून की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद भाटी ने जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय से 2015 में एलएलबी में दाखिला लिया और 2016 से यहां की राजनीति में सक्रिय हो गए और छात्र हितों में आवाज उठाने लगे।

सिर-माथे रखते हैं मायड़ भाषा

रविंद्र सिंह भाटी आज भी अपने सारे भाषण अपनी मातृभाषा में ही देते हैं, मातृभाषा से उनका लगाव आप इस तरह देख सकते हैं कि विश्वविद्यालय के बड़े से बड़े मंच पर भी भाटी मायड़ भाषा का ही इस्तेमाल करते हैं।

एबीवीपी से टिकट नहीं मिलने पर बने थे निर्दलीय उम्मीदवार

रविंद्र सिंह भाटी 2019 में हुए छात्रसंघ चुनावों में अध्यक्ष चुने गए थे, इस दौरान अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने भाटी को अपना उम्मीदवार नहीं बनाया था, जिसके बाद उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया और 1294 वोटों से जीत दर्ज की।

बता दें कि यही वो विश्वविद्यालय है जहां से सूबे के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत हरीश चौधरी, डॉ जालम सिंह रावलोत, बाबू सिंह राठौड़ जैसे कई नाम निकले हैं।

Add Comment

   
    >