जोधपुर की वो जेल जहां दी जाती थी काला पानी की सजा,  8 महीनों तक कैद रहे थे 32 क्रांतिकारी

ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने आजादी की लड़ाई में शामिल सेनानियों को अनेकों यातनाएं दी, उन दिनों के किस्से सुनकर आज भी हमारे रौंगटे खड़े हो जाते हैं। अंग्रेजों ने भारतीयों को महीनों-महीनों जेल में कैद रखा जहां उन्हें कई अमानवीय सजा दी जाती थी।

जोधपुर के माचिया किले में भी अंग्रेजों की बनाई एक सेल्युलर जेल आज भी मौजूद है जहां स्वतंत्रता सेनानियों पर अत्याचार किए जाते थे। इस जेल के बारे में बताया जाता है कि यहां मारवाड़ के 32 स्वतंत्रता सेनानियों को 8 महीने तक कैद रखा गया।

चारों तरफ जंगल और जंगली-जानवरों से घिरी इस जेल में आज भी जाना किसी खतरे से खाली नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि इसी जेल में कई कैदियों को काले पानी की सजा दी गई थी। बता दें कि साल में एक बार आजादी के दिन यानि 15 अगस्त को इस जेल को सफाई के लिए खोला जाता है।

8 महीने तक नजरबंद रहे 32 स्वतंत्रता सेनानी

माचिया किले के बारे में बताया जाता है कि यहां की जेल में दिसम्बर 1942 से अगस्त 1943 तक 32 स्वतंत्रता सेनानियों को नजरबंद रखा गया। उस दौर में जोधपुर के महाराजा उम्मेद सिंह व अंग्रेज सरकार की तरफ से डोनाल्ड फील्ड अधिकारी थे।

ब्रिटिश हुकूमत के आगे सीना तान कर खड़े रहे स्वतंत्रता सेनानी

माचिया की जेल से कैदियों को रिहा करने के लिए अंग्रेजों ने उनके सामने लिखित में बयान देने की शर्त रखी जिसमें कहा गया कि वो जेल से जाने के बाद अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज नहीं उठाएंगे लेकिन सभी सेनानियों ने यह करने से मना कर दिया जिसके बाद इन नजरबंद कैदियों को काला पानी जैसी सजा दी गई।

राष्ट्रीय स्मारक नहीं किया गया घोषित

इलाके के कई पर्यावरणविद् व समाजसेवी समय-समय पर माचिया किले को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की मांग उठाते रहे हैं लेकिन अभी इस पर कोई सुनवाई नहीं हुई है. वहीं 2015 के बाद से अब किले में 15 अगस्त के दिन सेनानियों के परिवार वालों को सम्मानित किया जाता है।

बता दें कि जोधपुर के कायलाना क्षेत्र के आस-पास फैली यह 648 हेक्टेयर जमीन वन विभाग के अधीन आती है। वहीं 41 हेक्टेयर में माचिया सफारी पार्क बना है जिससे 3 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर यह वीरान किला बना हुआ है जो 65 हेक्टेयर में फैला है। माचिया किले का निर्माण को जोधुपर के महाराजा तख्तसिंह ने शिकार के लिए करवाया था। किले के अंदर वर्तमान में एक कीर्ति स्तंभ दिखाई देता है जिसे स्वतंत्रता सेनानियों की याद में 1999 में बनवाया गया था।

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