पहाड़ी को चीरते हुए निकली माँ की मूर्ति, अनोखा मंदिर जहाँ भीम ने नाख़ून से खोद डाला कुंड

भीम जब शिखर चढ़ा,
नाखूनों से बनाया कुंड।
शेर तो एक ही बहुत है,
कुत्तों के होते हैं झुंड।

दोस्तों नमस्कार।

दोस्तों आज मैं आपको ऐसे मंदिर की दास्तान सुनाने जा रहा हूं, जिनकी मूर्ति पहाड़ी को चीरते हुए निकली थी। बनाई हुई नहीं है। मैं बात कर रहा हूं ज्वाला माता के मंदिर (Jwala Mata Ka Mandir) की। जोधपुर (Jodhpur) के ज्वाला माता (Jwala Mata) के मंदिर में जो मूर्ति है वह प्राकृतिक है। कृत्रिम नहीं है। वह मूर्ति पहाड़ी को चीरते हुए निकली थी।

एक बार की बात है। एक ब्राह्मण रोज वहां पूजा पाठ करते थे, तो ज्वाला माता ने प्रसन्न होकर कहा था कि बोलो तुम्हारी क्या तमन्ना है। तब श्रद्धा से ओत प्रोत ब्राह्मण ने मां से एक ही अरदास की थी कि हे मां आप हमें दर्शन दो।

मैं आपके दर्शन करना चाहता हूं। तो मां ने कहा कि ठीक है मैं आ रही हूं, लेकिन आप शोर मत करना। यदि शोर करोगे तो मेरा स्वरूप वहीं पर रुक जाएगा। मां ने पहाड़ी चीरकर बाहर आना शुरू किया, तो आधा शरीर बाहर आ चुका था। एक पांव आना शेष रह गया था। तब माता की सवारी शेर भी आ गया। तो पंडित जी ने डर के मारे जोर से चिल्लाना शुरू किया। हे मां बचा लो। यह शेर खा जाएगा। इतना कहते ही मां का स्वरूप वहीं पर रुक गया और एक पैर बाहर आना शेष रह गया।

ज्वाला माता का मंदिर जोधपुर का सबसे पुराना मंदिर है यहां पर पूजा पाठ का कार्य वंशानुगत चला आ रहा है। यहां पर दूर-दूर से माता के दर्शन करने हेतु श्रद्धालु आते हैं और मां उनकी इच्छा पूरी करती है। भीम का स्वरूप दिखाते हुए, वहां के पंडित जी कहते हैं कि ऐसा स्वरूप भारत में कहीं दूसरा नहीं है। अज्ञातवास के समय पांडव कुछ दिन यहां पर रुके थे।

जिस पहाड़ी पर ज्वाला माता का मंदिर है वह पहाड़ी राजस्थान में सबसे ऊंची पहाड़ियों में गिनी जाती है। उस पहाड़ी पर बैठकर भीम अज्ञातवास के समय 300 किलो मीटर दूर तक देख सकते थे कि कौन आ रहा है या कौन जा रहा है।

उस समय पहाड़ी के ऊपर पानी की परेशानी होने के कारण भीम (Bheem) ने अपने नाखूनों से खोदकर एक बड़ा कुंड बना दिया। जिसकी गहराई लगभग 30 फीट है। वह कुंड हमेशा पानी से भरा हुआ रहता है। हजार साल पहले तक किसी ने भी इसको आज तक खाली नहीं देखा।

यहां पर जो भी अपनी मन्नत लेकर आता है मां उसकी इच्छा को पूरी करती है। पंडित जी ने अपनी पत्नी को साथ में दिखाते हुए कहा कि हम दोनों मां की कृपा से ही यहां पर सुरक्षित और स्वस्थ बैठे हैं नहीं तो आज हम नही होते।

यह मंदिर यहां पर महाभारत काल से ही बना हुआ है भारत में ज्वाला माता के तीन मंदिर हैं। एक मंदिर यहां जोधपुर में है दूसरा मंदिर जोबनेर (Jobner) में है और तीसरा हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में है। जो श्रद्धालु मंदिर को देखने के लिए आए थे, जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह बोलती मूर्ति है। ऐसी मूर्ति आपको कहीं नहीं मिलेगी, इसलिए हम यहां पर आते हैं।

” ज्वाला माता को बार-बार प्रणाम ”

अपने विचार।
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विश्वास में हरि बसे,
कर देखो विश्वास।
मन शंका ना रखिए,
पूरी होती आस।

विद्याधर तेतरवाल,
मोतीसर।

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