रानी बघेली : अपनी बेटी का बलिदान देकर जोधपुर के उत्तराधिकारी को बचाया, कहते हैं मारवाड़ की पन्नाधाय

भारतीय इतिहास में राजस्थान की धरा वीर प्रसूताओं की रही है जिसके पग- पग पर एक रणभूमि है। यह धोरों की धरती वीरता एवं पराक्रम के साथ ही अपने राष्ट्र प्रेम, स्वामिभक्ति एवं संस्कृति की रक्षा के लिए प्राणों को उत्सर्ग करने हेतु तत्पर रहने वाले शूरवीरों का प्रतिनिधित्व करती है।

ऐसी ही एक कहानी है रानी बघेली की, राजस्थान की अन्य वीरांगनाओं की तरह रानी बघेली की गाथा भी त्याग और स्वामिभक्ति की रही।

राजस्थान के मारवाड़ (जोधपुर) राज्य के राजकुमार अजीतसिंह को औरंगजेब से बचाने के लिए मारवाड़ के बलुन्दा ठिकाने की रानी बघेली ने अपनी नवजात दुधमुही राजकुमारी का बलिदान देकर राजकुमार अजीतसिंह के जीवन की रक्षा की एवं औरंगजेब के आतंक के साये से बचाते हुए राजकुमार अजीतसिंह का लालन पोषण किया।

इतिहासकारों ने की रानी बघेली के साथ नाइंसाफी

रानी बघेली के इस अदम्य त्याग और बलिदान की गाथा को हलांकि वो एतिहासिक सम्मान नही मिल पाया जो पन्नाधाय को मिला। इतिहासकारों ने रानी के स्वामिभक्ति एवं त्याग की गाथा का समुचित वर्णन नही किया है अतः आमजन की अनभिज्ञता द्रष्टव्य है|

अफगानिस्तान के जमरूद नामक ठिकाने आर २८ नवम्बर १६७८ को जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह का निधन हो गया था। उनके निधन के समय उनके साथ रह रही दो रानियां गर्भवती थी। अतः वीर शिरोमणि दुर्गादास एवं अन्य सरदारों ने इन रानियों को महाराजा के पार्थिव शरीर के साथ सती होने से रोक लिया।

दोनों रानियों को लाहौर लाया गया, १९ फरवरी १६७९ को दोनों रानियों ने एक एक पुत्र को जन्म दिया जिसमें बड़े राजकुमार का नाम अजीत सिंह एवं छोटे राजकुमार का नाम द्ल्थम्बन रखा। १६७९ में जोधपुर के सरदार इन दोनों रानियों को लेकर दलबल के साथ दिल्ली पहुंचे।

लेकिन तब तक औरंगजेब ने कूटनीति से पूरे मारवाड़ राज्य पर कब्जा कर लिया था एवं राजकुमार अजीतसिंह को जोधपुर राज्य के उत्तराधिकारी की मान्यता देने से इंकार करने लगे, तब जोधपुर के सरदार दुर्गादास राठौर, बलुन्दा के ठाकुर मोहकम सिंह आदि ने औरंगजेब के षड्यंत्र को भांपते हुए शिशु राजकुमार को जल्द से जल्द मारवाड़ पहुंचाने का निर्णय किया।

जोधपुर के उत्तराधिकारी के जीवन की रक्षा की..

उसी समय बलुन्दा की मोहकम सिंह की रानी बघेली भी अपनी नवजात राजकुमारी के साथ दिल्ली ठहरी हुई थी। उसने राजकुमार अजीतसिंह के रक्षार्थ राजकुमार को अपनी राजकुमारी से बदल लिया और राजकुमार को राजकुमारी के कपड़ों में छिपाकर खिंची मुकंदास व् कुंवर हरीसिंह के साथ दिल्ली से बलुन्दा ले आई।

रानी बघेली ने किसी को भनक तक नहीं लगने दी। दासियों तक को रानी बघेली ने यह भनक न लगने दी की राजकुमारी के वेशभूषा में राजकुमार का लालन पालन हो रहा है। छह माह तक रानी ने स्वयं ही राजकुमार का लालन-पालन किया। एक दिन एक दासी ने कपड़े पहनाते वक्त देख लिया, यह बात उसने दुसरी रानियों को बता दी।

अतः अब बलुन्दा का किला राजकुमार की सुरक्षा के लिए उचित नहीं ऐसा मानकर रानी ने मायके जाने का बहाना किया तथा खिंची मुकुंदास एवं कुंवर हरी सिंह की सहायता से राजकुमार को लेकर सिरोही के कालिंद्री गाँव में अपने एक निष्ठ्वान परीचित जयदेव नामक ब्राह्मण को राजकुमार के लालन-पालन के लिए सौंप दिया। जयदेव की पत्नी ने अपना दूध पिला कर जोधपुर के उतराधिकारी राजकुमार को बड़ा किया।

बता दें कि राजकुमार अजीत सिंह ही बड़े होकर जोधपुर के महाराजा बने। इस तरह रानी बघेली ने अपने अदम्य त्याग और बलिदान का परिचय देकर मारवाड़ के भविष्य की रक्षा की। रानी बघेली के त्याग के बिना आज मारवाड़ का इतिहास कुछ और ही होता।

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