एक ऐसा परिवार जो दशहरे के दिन रावण का मनाते हैं शोक, कहानी सुन आप भी रह जाएंगे भौचक्के

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आज पुरे भारत के अंदर दशहरे का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है लेकिन अगर हम आपको कहेंगे भारत के अंदर एक ऐसा परिवार और समाज है जो दशहरे को शोक के तौर पर बनाता है तो शायद आप अचम्भित हो जाएंगे। अगर हम आपको कहीं की राजस्थान एक ऐसा परिवार है ऐसा समाज है जो कि रावण का वंशज मानते हैं शायद आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे लेकिन यह सच है राजस्थान के जोधपुर जिले में श्रीमाली ब्राह्मण समाज खुद को रावण का वंशज मानता है।

दशहरे पर शोक मानता है समाज

बताया गया हैं कि जब रावण जोधपुर के मंडोर में शादी करने के लिए आए थे। तभी यह परिवार उनके साथ आया था और रावण को लंका वापस चले गए लेकिन वह परिवार में ही रह पर रह गया था। यह अपना गोत्र गोधा बताते हैं। श्रीमाली ब्राह्मण समाज रावण की विशेष पूजा भी करता है। वह दशहरे के दिन पर शोक मनाते हैं। साथ ही साथ श्राद्ध पक्ष की दशमी को रावण का श्राद्ध भी करते हैं। रावण के वंशज दहन की दिन लोकाचार स्नान करके कपड़े बदलते हैं।

कई परिवार है रावण के वंशज

इस परिवार की रहने वाली कमलेश दवे कहती हैं कि उनके गोत्र के 100 से ज्यादा परिवार यहां रहते हैं। साथ ही फौलादी में 60 से अधिक परिवार में रहते हैं। वह कहते हैं कि हम रावण के वंशज है, इसमें कोई दो राय नहीं है। अपने आप को रावण का वंशज कहने वाला यह परिवार विवाह के समय त्रिजटा पूजा करता है। यह मान्यता है कि औरतें सिंदूर की बिंदी लगाती है और इसी के बाद भोजन करती है। जो भी महिला ऐसा नहीं करती उसकी मृत्यु हो जाती है। त्रिजटा को रावण की बहन बताया गया है। अशोक वाटिका प्रसंग रामचरितमानस में इसका जिक्र भी है।

रावण और उसकी पत्नी का है मंदिर

मेहरानगढ़ की तलहटी में समाज के द्वारा रावण का 2008 में मंदिर भी बनवाया गया था। वही रावण की शिव की आराधना करते हुए विशाल प्रतिमा लगाई गई है। दशहरे की दिन यहां पर विशेष पूजा-अर्चना होती है। वहीं इसके अलावा रावण की पत्नी मंदोदरी का मंदिर भी यहां पर बनवाया गया है। कहते हैं कि रावण वेद पुराण के ज्ञाता थे और जब भी कोई ज्योतिष सीखने वाला बच्चा अपनी शुरुआत करता है तो वे रावण की पूजा करता है। वही गांव में मान्यता है कि जब बच्चे डर जाते हैं तो इस मंदिर में उनकी पूजा होती है। जिसके बाद बच्चों का डर खत्म हो जाता है।

राजस्थान से रावण का यह कनेक्शन

राजस्थान के जोधपुर के मंडोर से रावण का एक कनेक्शन है। मंडोर को रावण का ससुराल माना जाता है। इतिहास के बारे में आपको बताएं तो असुरों के राजा माया सुर का दिल हेमा नाम की अप्सरा पर आ गया था। जिसके बाद उन्होंने हेमा के लिए प्रसन्न होकर मंडोर का निर्माण किया था। वही मायासुर और हेमा की एक पुत्री थी, जिसका नाम मंदोदरी था। अप्सरा की बेटी होने के साथ ही मंदोदरी बहुत खूबसूरत थी। एक समय इंद्रदेव का मायासुर से विवाद हो गया, जिसके बाद में मायासुर ने मंडोर को छोड़ दिया था। बाद में मंडूक ऋषि ने मंदोदरी का पालन पोषण किया था। जब मंदोदरी विवाह के लायक हुई तब मंडूक ऋषि ने मंदोदरी के लिए अच्छा वर खोजने के लिए कई प्रयास किए। उसके बाद उन्होंने रावण को ढूंढा और रावण को शादी के लिए तैयार किया। कहा जाता है कि मंडोर पर आज भी एक स्थान है ऐसा जहां पर रावण और मंदोदरी ने फेरे लिए थे।

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