डाकुओं द्वारा बनवाया गया रहस्यमयी मंदिर जहाँ माता को लगता है ‘ढाई प्याले श’राब’ का भोग

ओसवाल जैनों कुछ राजपूतों और गौड़ ब्राह्मणों की कुलदेवी भंवाल माता का मंदिर (Bhanwal Mata Mandir) नागौर (Nagaur) जिले के भंवाल (Bhanwal)/भंवालगढ़ गांव में स्थित है।इस मंदिर में माता की काली और ब्रह्माणी दो रूपों में पूजा की जाती है।मंदिर इतिहास प्रामाणिक नहीं है किताबों में बताया गया है कि 1119 में इस मंदिर का निर्माण हुआ लेकिन मंदिर में लगे शिलालेख के मुताबिक यह मंदिर वि. स. 1380 मंदिर में हुआ।सीमेंट जैसी किसी भी वस्तु का प्रयोग नहीं किया गया है।मंदिर के चारों ओर सुन्दर प्रतिमाएँ व कारीगरी की गयी है।कथा का प्रसंग इस भांत है कि माता प्राचीन काल में भंवालगढ़ गांव की एक खेजड़ी के पेड़ के नीचे धरती से स्वत: प्रकट हुई थी और वहीं आसपास राजा के सैनिकों ने डाकुओं को घेर दिया।

समय रात का था इस खेजड़ी के नीचे डाकुओं ने रात काटने का फैसला लिया और महफिल जमाई।वहां पत्थर की मूर्ति थी माता की।डाकु इस बात से अनभिज्ञ थे, प्याला भर शुरू करने वाले थे कि अचानक प्याला पत्थर की मूर्ति के लग गया और उसमें भरा मद्य गायब हो गया।डाकुओं ने दूसरा प्याला भरा और उसे मूर्ति के आगे किया, वह भी गायब, वे प्रयोग में सक्रिय हुए जा रहे थे।उन्होंने तीसरा प्याला भरकर आगे किया तो वह आधा खाली रहा।यह अद्भुत और आश्चर्यजनक दृश्य देखकर डाकुओं ने माता से अरदास की कि वे उन्हें राजा के सैनिकों से बचायें।मान्यता है कि मां ने डाकुओं को भेड़-बकरी के झुंड में बदल दिया, हालांकि कुछ लोग बताते हैं कि उन्हें वृद्ध बना दिया और उनके सवारी साधन थे उनको भेड़-बकरी बनाया। उनके प्राण बच गये।लोक लेखा यही कहता है कि यह मंदिर भी उन्हीं डाकुओ ने बनवाया।

काली माता (Kali Mata) के प्राचीन समय में ब’करे की जब ब’लि देते थे तो खू’न का प्या’ला चढ़ाया जाता था।वर्तमान में मद्य के ढाई प्याले काली (कालकी माता) माता के और ब्रह्माणी माता (Brahmani Mata) के मीठा प्रसाद चढ़ता है।चेत्र और आसोज के नवरात्रा में दो बार मेला भरता है।इस समय श्रद्धालुओं के जत्थे के जत्थे दर्शन करने आते हैं।मंदिर में रहने के लिए उचित व्यवस्था भी परिसर में की गयी है।भंवाल अथवा भुवाल जैतारण- मेड़ता मार्ग पर स्थित है। निकट का रेलवे स्टेशन मेड़तारोड़ है। यहाँ से किराए के वाहन उपलब्ध रहते।मंदिर में जितने का प्रसाद बोला गया होता है ठीक उतने का ही प्रसाद चढ़ाना पड़ता है।बोतल का मसला भी इसी प्रकार है।मंदिर परिसर में च’मड़े का बे’ल्ट, बी’ड़ी गु’ट’खा लाना सख्त मना है।मान्यता है कि जो ऐसा करते हैं उनकी न मनोकामना पूरी होती है न प्रसाद चढ़ता है।

काली माता और ब्रह्मणी माता दोनों की मूर्तियों पार्श्व में क्रमशः काला भैंरू और धोळा भैरूं जी की प्रतिमाएँ भी स्थापित हैं।जिस प्याले में प्रसाद चढ़ाया जाता है वह प्याला चांदी का होता है।माता का नाम भंवाल नहीं है, चूंकि जिस गांव में मंदिर है उस गांव का नाम भंवाल/भुंवाल है, इस कारण लोग भुंवाल वाली माता या भंवाल माता के नाम से पुकारते हैं।

Add Comment

   
    >