दधिमती माता मंदिर का चमत्कार जब औरंगजेब भी उलटे पांव भागा,गुंबद पर हाथ से उकेरी गई पूरी रामायण

आज हम आपको कहानी बताएंगे नागौर जिले के जायल तहसील के गोट मंगलूर गांव में स्थित दधिमती माता मंदिर के बारे में और उसके इतिहास से जुड़ी कहानिया भी बताएगे। दधिमती माता दधीचि ऋषि की बहन थी और इन्हें लक्ष्मी जी का अवतार माना जाता है। माना जाता है कि दधिमती माता का जन्म माघ महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को हुआ था। यह ब्राह्मणों की कुलदेवी या कुलमाता है।

दधिमती माता का नागौर जिले में स्थित मंदिर 2000 साल पुराना बताया जाता है। बताया जाता है कि उत्तर भारत का यह सबसे पुराना मंदिर है। यह मंदिर संवत 289 में बना था, यहां की गुबंद का निर्माण 1300 साल पहले हुआ था। वही बताया जाता है कि गुबंद में हाथ से पूरी रामायण लिखी हुई है। यहीं पर दधिमती माता प्रकट हुई थी और इसी के बाद उनका मंदिर बनाया गया था।

अयोध्या के राजा के चार कुंड

बताया जाता है कि नागौर जिले के इसी स्थान पर आकर अयोध्या के राजा मांधाता ने यज्ञ किया था। उन्होंने चार हवन कुंड बनाए थे और इन्हीं चार हवन कुंडों में गंगा, यमुना, सरस्वती व नर्मदा नदी का जल उत्पन्न किया था। सभी जल का स्वाद भी अलग था।

मेले में आते है लोग, कलयुग से जुड़ा है तार

बताया जाता है कि अष्टमी के दिन दधिमती माता मंदिर में मेला भरता है। मेले में देशभर से लाखों लोगों की भीड़ यहां माता के मंदिर में दर्शन करने के लिए उमड़ती है। मान्यता है कि कलयुग के बढ़ते प्रभाव से मंदिर का मुख्य स्तंभ जमीन से चिपकता जा रहा है। बताया जाता है कि कलयुग जैसे जैसे बढ़ता जाएगा वैसे वैसे यह स्तंभ की सतह से चिपकता जाएगा। वही दधिमती माता के बारे में बताया जाता है कि उन्होंने विताकसुर नाम के राक्षस का वध किया था।

औरंगजेब भी भागा उल्टे पांव

मंदिर कमेटी से जुड़े रिटायर्ड जिला जज संपत राज शर्मा ने बताया कि मुगलों के दौर में यहां औरंगजेब की सेना ने मंदिर पर ह’मला कर दिया था। उसी समय मंदिर के अंदर मधुमक्खियों का एक छत्ता था। औरंगजेब की सेना ने जब मंदिर पर हमला किया, तब मधुमक्खियों ने उन पर आक्रमण बोल दिया था। इसी के परिणामस्वरूप औरंगजेब की सेना को उल्टे पांव मंदिर के इलाके को छोड़कर भागना पड़ा था। बताया जाता है कि दधिमती माता यहीं पर प्रकट हुई थी और उन्हीं ने औरंगजेब की सेना को उल्टे पांव भगाया था।

श्रद्धालुओं के लिए है इंतजाम

दधिमती माता मंदिर के भीतर नवरात्रों के समय हर रोज एक लाख लोग दुर्गाष्टमी के पाठ को पढ़ते है। वहीं मंदिर में श्रद्धालुओं के लिए कई इंतजाम किए गए हैं। मंदिर परिसर में ही 250 कमरों की धर्मशाला तैयार है और वहीं पर श्रद्धालुओं को रुकने व अन्य व्यवस्थाओं का इंतजाम किया जाता है।

कोरोना काल का पड़ा असर

पिछले 2 सालों से जहां पूरे भारत में कोरोनावायरस महामारी ने देश की जनता को जकड़ लिया है। वहीं इस मंदिर पर भी इसका प्रभाव पड़ा था। जब पूरे देश में लॉकडाउन लगाया गया तब मंदिर के पट भी आम भक्तों के लिए बंद हो गए थे। लेकिन अब सरकार के दिशा निर्देशों के बाद मंदिर को खोलने की तैयारी की जा रही है।

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