श्री गुरु जंभेश्वर जांभोजी महराज री जीवन री कहाणी, विष्णु विष्णु तूं भण रे प्राणी

जांभोजी रो जलम सन 1451 में नागौर परगणै रै पीपासर गांव में लोहट जी पंवार रै घरां हुयौ।वांरी माताजी रो नांव केसर हो।संतान रै रूप में जांभौजी अकेला ई हा।बतावे के जीवन रा 7 बरसां तांई कीं नीं बोल्या।सताइस बरस गौपालण करयौ।अर 1508 में थापना करी बिश्नोई संपरदाय री।सभा में आपरा उणतीस नेम सांम्ही राख्या अर कयौ के आं नेमां नैं जो कोई मानसी, म्है उणनै म्हारै संप्रदाय रो समझसूं।भांत-भांत री जातियां रा मिनख भेळा हुयोडा़ हा अर उण बगत इण संपरदाय री थरपणा हुई।

अर इण उणतीस नेमां नैं पालणिया व्है गा बिसनोई।लोक में बगती कथा रे मुताबक जांभोजी आपरी सगळी संपति दान कर दीन्हीं अर बीकानेर रे समराथळ धोरां में आयग्या।अर अठै ई आपरै संपरदाय री थापना करी, जिण जिग्यां थापना करीजी उण जिग्यां नैं धोक धोरै ऊं जाणिजै। पर्यावरण रा वैज्ञानिक नाम सूं चावा जांभोजी सदीव हिन्दू-मुस्लिम अर भरमित आडम्बरां रो सदीव विरोध कियौ।

जांभोजी रे मुख सूं उचरत वाणी ‘सबदवाणी’ केलावै।इणनै जंभवाणी या गुरुवाणी ई कैइजे।बिश्नोई संपरदाय गुरू जाम्भो जी नैं विष्णु रा अवतार मानै। गुरू जाम्भो जी रो मूलमंत्र हो के हृदय सूं विष्णु रो नांव जपो अर हाथ सूं काम करो।जाम्भोजी संसार नैं नाशवान अर मिथ्या बतायी।आ इणनै गोवलवास या एस्थायी बतायी।जलम भूमि पीपासर अर थापना भूमि समराथळ में जांभौजी रा भव्य मंदिर बण्योडा़ है।नोखा तहसील में मुकाम में ई जब्बो मंदिर बणयेड़ौ है।

जठै हर बरस फागण आसोज की अमावस्य नैं मेळौ भरीजै।लालसर बीकानेर में उआं निरवाण प्राप्त करियौ।जोधपुर में एक गांव है जांभा जको फलोदी तैसील में पडै़।उण गांव में गुरु जंभेश्वर रै के’णै माथै जैसलमेर दरबार एक तालाब बणायौ हो।बिश्नोई समाज सारू ओ तालाब पुस्कर ज्यूं तीरथ है।जांगळू, रामडा़वास अर उत्तर प्रदेश रे लोदीपुर में जंभेश्वर जी रा परमुख मंदिर है।

बिश्नोई संपरदाय रा आपरा कैई नेम है जकां नै वे अनुसरण करै। जिंया लीलो गाभौ नीं पै’रणो, दा’रु-मां’स सूं दूरी, शि’ कार प्रतिबंध, रूंखा री रक्षा।आप सोच सको इण बगत पिरथी माथै ग्लोबल वार्मिंग री कांई हालात है।और तो और इण महामारी में ही रूंखा री याद आयगी।काश इण बगत भी कोई जांभोजी दांई सोचणियौ हुंतौ तो आक्सीजन सारू भारत तड़पतौ कोनी।आपां खेजड़ली रो ब’लिदान किंया भूल सकां।इमरती देवी ई बिश्नोई ई ही।

याद करया जावै वांनै अर कीं सोच्यौ जावै।जांभोजी नैं अनुसरण करणिया अभिवादन में निंवण केवै अर “विष्णु विष्णु तूं भण रे प्राणी” मंतर रो उच्चारण ई करै।

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