नागौर: जाट मतदाताओं से उतरा भाजपा-कांग्रेस का नशा, मारवाड़ की सबसे रोचक लोकसभा सीट का पूरा इतिहास

राजस्थान के 25 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से 8 विधानसभा क्षेत्रों में बंटा नागौर मारवाड़ में जाट राजनीति का केंद्र माना जाता है। 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनावों के बाद से यहां चुनावी सरगर्मियां अलग अंदाज में दिखाई देती है।

देश की राजधानी से 493.3 किलोमीटर दूरी पर बसे नागौर में मैथी के अलावा राजनैतिक परिवारों की दिलचस्प टक्कर और निर्दलीय उम्मीदवारों की हुंकार हर चुनावी मौसम में चर्चा का विषय रहती है।

वहीं नागौर की बात करें तो विशेष रूप में हर साल लगने वाले पशु मेले के लिए काफी जाना जाता है। इसके अलावा नागौर किला आकर्षण का केंद्र है।

मिर्धा परिवार का दबदबा

नागौर की राजनीति देश आजाद होने के दिनों से ही राजनैतिक पार्टियों नहीं परिवारों के आसपास ही रही है। मिर्धा परिवार ने नागौर की राजनीति में 50 साल दबदबा बनाए रखा।

नागौर की राजनीति की बात करें और मिर्धा परिवार का जिक्र नहीं हो तो यह वहां की जनता से बेमानी होगी। दिग्गज किसान नेता नाथूराम मिर्धा से लेकर रामनिवास मिर्धा तक हर किसी ने संसद में राजस्थान का प्रतिनिधित्व किया।

एक पुराने किस्से के मुताबिक देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने ग्राम सशक्तिकरण को लेकर नागौर से ही बलबतराय मेहता समिति की सिफारिशों को लागू करने का फैसला किया था जिसके बाद 1971 में देश के राजनीतिक पटल पर नाथूराम मिर्धा का नाम चमकने लगा।

नाथूराम मिर्धा के बाद नागौर की जनता ने उनके बेटे ने भानुप्रकाश मिर्धा को सिर-आंखों पर बैठाया। मिर्धा परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया नाथूराम मिर्धा की पोती डॉ. ज्योति मिर्धा ने जिन्होंने कांग्रेस के टिकट पर यहां से चुनाव जीता।

हालांकि, 2014 में देश में मोदी लहर के बीच मिर्धा परिवार का गढ़ रहा नागौर इस बार भाजपा के पाले में चला गया। भाजपा के सीआर चौधरी ने नागौर लोकसभा सीट से सांसदी हासिल की।

जातीय समीकरणों का खेल

नागौर में मतदाताओं के जातिगत समीकरणों की बात करें तो यहां की विधानसभा सीटों पर मुसलमान और जाट मतदाता ज्यादा हैं। वहीं राजपूत एवं अनुसूचित जाति तथा मूल ओबीसी के मतदाता हर बार चुनावी खेल बिगाड़ते हैं।

साल 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की आबादी 26,52,945 है जिसका 79.64 प्रतिशत हिस्सा शहरी और 20.36 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण इलाकों में रहता है।

क्या रहते हैं जनता के मुद्दे

हर गांव शहर की तरह यहां की जनता भी विकास के कई काम चाहती है लेकिन नागौर में मुख्य रूप से शिक्षा, उद्योग, रोजगार और इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे मुद्दे हर चुनाव में जोरों पर रहते हैं। वहीं, उच्च शिक्षण संस्थान और केन्द्रीय विद्यालयों की मांग भी लंबे समय से होती रही है।

इसके अलावा नागौर रेलवे का विस्तार करना, जिला होने के कारण एक मेडिकल कॉलेज जैसी कई मांगें हैं जो चुनाव के समय जनता करती है.

जाट बिगाड़ते हैं चुनावी गणित

नागौर लोकसभा सीट की चुनावी गणित की खास बात यह है कि 1977 के बाद से लगातार जनता ने यहां से जाट प्रत्याशी को जिताया है। वहीं पिछले विधानसभा चुनाव में भी 8 सीटों पर जाट प्रत्याशियों के जीतने से नागौर जाट लैंड के रूप में उभर कर आया है।

मिर्धा परिवार के समय से ही जाट राजनीति का केंद्र माने जाने वाले नागौर में आज भी जाट राजनीति शिखर पर रहती है। जाट प्रत्याशियों के जनता के बीच रूझान को देखते हुए राजनीतिक पार्टियां भी टिकट वितरण के समय खासा ध्यान रखती है। राजनीतिक पंडित कहते हैं कि जाट बाहुल्य सीट होने की वजह से 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने नागौर सीट हनुमान बेनीवाल के लिए छोड़ दी और उनकी पार्टी से गठबंधन किया।

विधानसभाओं का हिसाब-किताब

नागौर लोकसभा की बात करें तो यहां कुल 8 विधानसभा सीटें हैं जिनमें से 6 सामान्य वर्ग के लिए तो 2 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। यहां डीडवाना, लाडनूं, परबतसर, नावां, जायल, नागौर, मकराना, खींवसर विधानसभाएं हैं।

क्या रहा नागौर लोकसभा सीट का इतिहास

नागौर में अब तक हुए लोकसभा चुनावों में नाथूराम मिर्धा ने सबसे अधिक यानि 6 बार 1977 से लेकर 1996 तक लगातार चुनाव जीता। उन्होंने 1989 में जनता दल से शुरूआत करने के बाद आगे कांग्रेस से ही जीतते रहे।

नाथूराम के निधन के बाद उनके बेटे भानु प्रकाश मिर्धा आए। 1998 एवं 1999 में कांग्रेस के रामरघुनाथ चौधरी, 2004 में भाजपा के भंवर सिंह डांगावास एवं 2009 में कांग्रेस की ज्योति मिर्धा ने चुनाव जीता। आइए जानते हैं कि पहले चुनावों से लेकर वर्तमान तक नागौर लोकसभा सीट पर किसने सिर जीत का सेहरा बंधा।

1952-57 जीडी सोमानी- निर्दलीय

1957-62 मथुरादास माथुर – कांग्रेस

1962-67 एस के डे – कांग्रेस

1967-71 एनके. सोमानी स्वातंत्र पार्टी

1971-77 नाथूराम मिर्धा – कांग्रेस

1977-80 के नाथूराम मिर्धा – कांग्रेस

1980-84 नाथूराम मिर्धा – कांग्रेस (यू)

1984-89 राम निवास मिर्धा – कांग्रेस

1989-91 नाथूराम मिर्धा- जनता दल

1991-96 नाथूराम मिर्धा –  कांग्रेस

1996 नाथूराम मिर्धा-  कांग्रेस

1997-98 भानु प्रकाश मिर्धा – भारतीय जनता पार्टी

1998-99 राम रघुनाथ चौधरी-  कांग्रेस

1999-2004 राम रघुनाथ चौधरी – कांग्रेस

2004-09 भंवर सिंह डांगवास – भारतीय जनता पार्टी

2009-2014 ज्योति मिर्धा  – कांग्रेस

2014-2019 छोटू राम चौधरी – भारतीय जनता पार्टी

2019-वर्तमान – हनुमान बेनीवाल (आरएलपी)

2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में क्या हुआ?

2014 नागौर लोकसभा चुनाव

2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा को 41.3 फीसदी, कांग्रेस को 33.8 फीसदी वोट मिले तो निर्दलीय हनुमान बेनीवाल को 15.9 फीसदी वोट के साथ संतोष करना पड़ा। चुनावी नतीजों के मुताबिक भाजपा के सीआर चौधरी ने कांग्रेस सांसद ज्योति मिर्धा को 75,218 वोट से हराया।

कुल मतदान-  59.8 फीसदी

कुल मतदाता- 16,78,662

पुरुष मतदाता- 8,86,731

महिला मतदाता- 7,91,931

2019 लोकसभा चुनाव

2019 रके लोकसभा चुनावों में भाजपा ने आरएलपी के संयोजक हनुमान बेनीवाल के कंधों पर चढ़कर चुनावी सफर तय करने का फैसला किया। हनुमान बेनीवाल के सामने फिर कांग्रेस की ज्योति मिर्धा थी। नतीजों के मुताबिक नागौर लोकसभा सीट पर हनुमान बेनीवाल ने 181260 वोटों से ज्योति मिर्धा को हराया।

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