मां-बाप का सिर से साया उठने के बाद आदिवासी किसान परिवार का बेटा हिम्मत कर बना RAS अधिकारी

पहाड़ भी जिसका रास्ता रोक सके ना,
ऐसा शंकर मईडा है।
मात पिता का साया उठ गया,
लाखों मे नंबर चार खड़ा है।

जिसका जज्बा सितारों पर नाम लिखने को हाथ फैलाए, उसका रास्ता भला पहाड़ क्या रोकेंगे।

आज मैं एक ऐसी ही शख्सियत की कहानी बता रहा हूं जिस का जज्बा इतना ऊंचा हो, जिसके हौसले बुलंद हो, जिस में हिम्मत पहाड़ चीरने की हो, उसका रास्ता पहाड़ कैसे रोक सकते हैं। पीपलखूंट उपखंड के घंटाली के सीमावर्ती करवी गांव से अपने जीवन की शुरुआत करने वाले शंकरलाल मईडा का आज प्रशासनिक सेवा के टीएसपी क्षेत्र में एसटी की वरीयता सूची में चौथी रैंक पर चयन हुआ है।

आदिवासी बाहुल्य जिला प्रतापगढ़ के पीपलखूंट उपखंड क्षेत्र के शंकर लाल मईडा ठेठ आदिवासी परिवेश में पले और बड़े हुए हैं। साधारण आदिवासी किसान परिवार से अपने जीवन की शुरुआत करने वाले शंकर लाल मईडा का जीवन सफर बहुत मुश्किलो से भरा रहा है। उपखंड से 12 किलोमीटर दूर पहाड़ों के बीच बसा करबी गांव थेचला ग्राम पंचायत के अंदर आता है। शंकरलाल ने अपनी स्कूली शिक्षा प्रतापगढ़ के आवासीय विद्यालय में रहकर 10वीं और 12वीं क्लास प्रथम श्रेणी से पास की है।

माता पिता का साया :

शंकरलाल के सिर से मां का साया तो छोटी उम्र में ही उठ गया था लेकिन आरएएस मेंस परीक्षा से पहले पिताजी का भी निधन हो गया। तब शंकर लाल के ऊपर परिवार की और पढ़ाई की दोनों की जिम्मेदारी आ गई। शंकर लाल ने काफी दिनों तक एक निजी शिक्षण संस्थान में शिक्षण कार्य कर अपने परिवार का खर्चा चलाया लेकिन प्रशासनिक सेवा में जाने का जज्बा उनका कायम था। शंकर लाल के चाचा श्री रामलाल मईडा ने उनकी हर प्रकार से सहायता की है।

चयन का सपना साकार हो गया,
मन में कसक सी उठती है।
मात पिता दोनों का साया,
दिल की धड़कन कुछ कहती है।

शंकर लाल के परिवार में उनकी दो बहने हैं एक बहन बड़ी है जिसकी शादी हो चुकी तथा दूसरी छोटी बहन पढ़ रही है। शंकरलाल ने अपनी स्वयं की शादी प्रशासनिक सेवा में जाने के जज्बे के कारण तथा अपनी जिम्मेदारियों को समझने के कारण नहीं कर सका। जैसे ही शंकरलाल के चयन की खबर आई तो पूरे उपखंड में खुशी की लहर छा गई।

सिविल सेवा का पागलपन:

शंकरलाल ने अपनी सफलता का श्रेय माता पिता, गुरु जन, चाचा चाची एवं दोस्तों को दिया है उनका मूल मंत्र है कठिन परिश्रम और दृढ़ निश्चय। इन सबसे हटकर सिविल सेवा में जाने का पागलपन सबसे मुख्य है।

ऐसा पागलपन सबमें आए,
घर परिवार में खुशियां लाए।
फर्श से अर्श पर बैठे,
रोम रोम फुला न समाए।

अपने विचार: 

जज्बा मन में ऐसा बैठे,
लक्ष्य छूट न पाए।
लाख मुसीबत भले ही आए,
शंकर सा बन जाए।

विद्याधर तेतर वाल, मोती सर।

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