हरित प्रणाम वाले प्रोफ़ेसर श्यामसुंदर ज्याणी – UNCCD द्वारा लैंड फॉर लाइफ अवार्ड के लिए नामित

हिंदी के मशहूर कवि नरेश सक्सेना की एक कविता की पंक्तियां हैं जोकि पर्यावरण कि दिनोंदिन होती हालत खराब पर लिखी गई लगती है है-

अंतिम समय जब कोई नहीं जाएगा साथ
एक वृक्ष जाएगा
अपनी गौरैयों-गिलहरियों से बिछुड़कर
साथ जाएगा एक वृक्ष

अग्नि में प्रवेश करेगा वही मुझसे पहले
‘कितनी लकड़ी लगेगी’

शमशान की टाल वाला पूछेगा
ग़रीब से ग़रीब भी सात मन तो लेता ही है

लिखता हूँ अंतिम इच्छाओं में
कि बिजली के दाहघर में हो मेरा संस्कार
ताकि मेरे बाद

एक बेटे और एक बेटी के साथ
एक वृक्ष भी बचा रहे संसार में।

ये पंक्तियाँ सहज रूप से नहीं सम्भव हुई हैं।इसके पीछे एक चिंता है।विमर्श है।गर्त में जाती पर्यावरण व्यवस्था है। ऐसे समय में कुछ विलक्षण लोग जब पर्यावरण के प्रति अपने अगाध श्रद्धा से कार्य करते हैं तब यह बहुत सुंदर लगता है। आज हम बात कर रहे हैं एक ऐसे व्यक्ति के बारे में जिन्हें हाल ही में UNCCD द्वारा लैंड फॉर लाइफ अवार्ड के लिए नामित किया गया है।हम बात कर रहे हैं प्रोफ़ेसर श्याम सुंदर ज्याणी की।

प्रोफेसर श्यामसुंदर ज्याणी हनुमानगढ़ के नोहर तहसील के फेफाना गांव के हैं और अभी बीकानेर के डूंगर महाविद्यालय में पढ़ाते हैं।अमर उजाला को दी गई बातचीत में वे कहते हैं कि – “पिछले करीब एक दशक से मैंने पौधों को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है। दरअसल हमारी आज की अनेक परेशानियों की वजह वनस्पतियों की उपेक्षा भी है। पेड़-पौधों की कटान से भू-जल कम होता चला गया, बाढ़ का प्रकोप भयावह होने लगा और वर्षा कम होने लगी। पर्यावरण प्रदूषण की बड़ी वजह भी वनस्पतियों का अभाव होना ही है। चूंकि मैं अध्यापन के पेशे से जुड़ा हूं, इसलिए मैंने लंबे समय तक इस पर विचार किया कि यह स्थिति कैसे बदली जा सकती है।

अंत में मेरे सामने जो समाधान आया, वह यही कि पौधरोपण को हमारी सोच और संस्कृति का हिस्सा बना दिया जाए। इसके लिए मैंने खुद ही पहल की। जैसे, मैं हर आदमी को अपने यहां पौधे लगाने और उनकी देखभाल करने के लिए कहता हूं। इसका असर दिखने लगा है”।

श्याम सुंदर अपनी फेसबुक वॉल पर अपने कार्यक्रम लाइव करते रहते हैं।हरित प्रणाम करने वाले ज्याणी अब तक असंख्य पौधे लगा चुके।पौधारोपण का संदेश देने वाले प्रोफेसर ज्याणी इस पर्यावरण विरोधी समय में एक क्रांति का नाम है।उन्होंने मरुधरा को हरा-भरा बनाने की ठान ली है।पति पत्नी द्वय इस काम में पूरी लगन से लगे हैं।2006 में उन्होंने ‘पर्यावरण वनीकि’ नाम से एक मुहिम चलाई और अनेकों इंस्टीटयूट में जाकर उन्हें प्रेरित किया। ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण के इस बढ़ते दौर में ज्याणी जी जैसे व्यक्तियों की जरूरत बेशक महत्वपूर्ण है।वे इन कामों में किसी की आर्थिक मदद भी नहीं लेते।वे अपनी तनख्वाह से ही यह सब सम्भव करते हैं।

उन्होंने अपने आसपास के गांवों में मुहिम चलाई कि शादी ब्याह में भी लिफाफे, उपहार की जगह पौधे ही लाएं।और यह मुहिम खूब सफल भी हुई।फेसबुक पर उनका पेज है पर्यावरण पाठशाला नाम से, आप उसे अनुसरण कर सकते हैं, वे इस पर अच्छी जानकारियां देते रहते हैं साथ ही अनेकों पेड़ों के बारे में बताते रहते हैं।उन्हें ऐसे महत्वपूर्ण कार्यों के लिए राष्ट्रपति ने भी सम्मानित किया।झलको परिवार उन्हें सेल्यूट करता है।

श्यामसुंदर ज्याणी, श्याम सुंदर पूर्व सरपंच पिपलांत्री, अनुपमा तिवाड़ी, मिश्री बाबा फाउंडेशन आदि इस काम में पुरज़ोर से लगे हुए हैं।यह बहुत सुंदर बात है।हम सब को इन सब कार्यों के लिए आगे आना पड़ेगा क्योंकि आगे का समय कोई ज्यादा सुंदर नहीं है।

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