भारत की महान दीवार वाला कुम्भलगढ़ दुर्ग जिसे मुगल और अंग्रेज कभी जीत नहीं सके

राजस्थान में किलो की शान में चार चाँद लगाने वाला यह दुर्ग उदयपुर से करीब 90 किलोमीटर दूर राजसमंद जिले में अरावली की चोटी पर बना हुआ है। मेवाड़ का यह किला बनास नदी के तट पर स्थित है। दुर्ग को घाटियों और पहाडियों को मिलाकर बनाया गया है और इस दुर्ग के चारों ओर 13 पर्वत शिखर है जो किले को प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करते हैं। वर्तमान किले का निर्माण मेवाड़ के प्रसिद्ध शासक महाराणा कुम्भा द्वारा 15वी सदी में करवाया गया था। इस किले का नक्शा स्वयं राणा कुम्भा द्वारा तैयार किया गया था। इस दुर्ग की आधारशिला 1448 में रखी गई और इसका निर्माण कार्य लगभग 1458-1459 में पूरा हुआ। इस किले का परकोटा लगभग 36 किलोमीटर लम्बा और 7 मीटर चौडा़ है (जिस पर 4 घुड़सवार एक साथ चल सकते हैं)।

माना जाता है कि यह प्राचीर चीन की महान दीवार के बाद विश्व की दूसरी सबसे लम्बी दीवार है इसलिए इसे ‘भारत की महान दीवार‘ कहा जाता है। यह विशाल दुर्ग अभेद व अजेय है इसलिए इसे ‘अजयगढ़’ (जिस पर विजय प्राप्त करना आसान नहीं हो) नाम से भी जाना जाता है। यह दुर्ग अपने निर्माण के बाद से ही विभिन्न यु’द्धों को झेलता आया है और अपने पूरे इतिहास में केवल एक बार पराजित हुआ है।कुम्भलगढ़ का यह किला मेवाड़ को मारवाड़ से अलग करता है।

इस किले से दूर तक मारवाड़ और गुजरात प्रदेश दिखाई देता है जो शत्रु से सुरक्षा प्रदान करने में सहायक है इसलिए इस किले को ‘मेवाड़ की आँख’ , ‘मारवाड़ की छाती पर उठी तल’वार’ , ‘मेवाड़ – मारवाड़ सीमा का प्रहरी’ इत्यादि उपनामों से भी जाना जाता है। इस किले में 7 बड़े दरवाजे बने है जिन्हें पोल कहा जाता है। आरेठ पोल – पहला दरवाजा,हनुमान पोल – दूसरा दरवाजा (यहीं से पहले किले का परकोटा चारों ओर फैल जाता है) राम पोल – यह विशालकाय द्वार किले का सबसे बड़ा दरवाजा हैं ।इसके अलावा – हल्ला पोल, भैरव पोल, पाघरा पोल, निम्बू पोल, विजय पोल आदि दरवाजे बने हुए हैं।इस किले के भीतर एक लघुदुर्ग भी बना हुआ है जिसे ‘कटारगढ़ दुर्ग’ कहा जाता है। यह राणा कुम्भा का निवास स्थान हुआ करता था। यह दुर्ग धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है।

इस किले के 36 किलोमीटर की परिधि के अन्दर 360 मन्दिर बने हुए हैं जिनमें से 300 जैन मन्दिर है और बाकि हिन्दू या देवी देवताओं के मन्दिर हैं।किले में स्थित कुछ प्रमुख दर्शनीय स्थल निम्न हैं :-

बादल महल – यह किले के शीर्ष पर स्थित किला दो मंजिला महल है। इस महल की रचनात्मकता और वातानुकूलन प्रणाली देखने लायक है जो महल को ठंडा बनाये रखती है।

परशुराम मंदिर – यह मन्दिर एक प्राचीन गुफा में स्थित है और गुफा तक पहुँचने के लिए 500 सीढ़ियाँ उतरनी पड़ती है।

नीलकण्ठ महादेव मन्दिर – इस मन्दिर में पत्थर का बना 6 फीट का शिवलिंग स्थापित है। इसी मन्दिर में राणा कुम्भा जब पूजा में लीन थे तब उनके अपने पुत्र द्वारा उनका सिर ध’ड़ से अलग कर दिया गया।

वेदी मन्दिर – हनुमान पोल के पास स्थित यह जैन मन्दिर राणा कुम्भा द्वारा तीर्थयात्रियों के बलिदान के सम्मान में बनवाया गया था।

मम्मदेव मन्दिर – किले के नीचे बना यह मन्दिर राणा कुम्भा द्वारा 1460 में बनवाया गया था। इस मन्दिर में जो शिलालेख लगे हुए है वो मेवाड़ का इतिहास को बताते है।किले की तलहटी में महाराणा रायमल के बड़े पुत्र कुँवर पृथ्वीराज की छतरी बनी हुई हैं जो ‘उड़णा राजकुमार’ के नाम से जाना जाता था। इस दुर्ग की ऊँचाई के बारे में इतिहासकार अबुल फजल ने लिखा है कि – “यह दुर्ग इतनी बुलंदी पर बना हुआ है कि नीचे से ऊपर की तरफ देखने पर सिर की पगडी़ गिर जाती है।” यह किला ऐतिहासिक विरासत की शान, मेवाड़ के महान योद्घा महाराणा प्रताप की जन्म स्थली और शूरवीरों की तीर्थस्थली के रुप में जाना जाता है। कुम्भलगढ़ दुर्ग को जून 2013 में यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में सम्मिलित किया गया है ।

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