राव गोपाल सिंह खरवा वह ठाकुर जिसने हिला दी अंग्रेजी हुकूमत की कूचें, आजीवन लड़ा जुल्म के खिलाफ

अंग्रेजों का राजस्थान के शासन में बढ़ता हस्तक्षेप राजस्थान के कई राजपूत शासकों व जागीरदारों को कभी रास नहीं आया. वे समय-समय पर अपने तरीके एवं सामर्थ्य के अनुसार अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष का बिगुल बजाते रहे। इन्हीं वीरों में से एक थे अजमेर के पास स्थित राजपुताना की खरवा के शासक राव गोपाल सिंह थे. अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने के आरोप में उन्हें तोड्गढ़ दुर्ग में 4 साल का कारावास भी काटना पड़ा था।

12 साल की उम्र में हो गए घुड़सवारी में पारंगत

राव गोपाल सिंह का जन्म खरवा राज्य परिवार में कार्तिक कृष्णा ११ संवत १९३० (११ अक्तूबर १८७३) के दिन माधो सिंह और रानी गुलाब कुंवर चुण्डावत के परिवार में हुआ. कुंवर गोपाल सिंह 12 साल की उम्र में घुड़सवारी और निशानेबाजी में पारंगत हो चुके थे।

साहस और निर्भीक कुंवर गोपाल सिंह देश प्रेमी, क्रांति के अग्रदूत सेनानी थे. राव की शिक्षा मेयो कोलेज अजमेर में हुई. 6 साल वहां से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया. वे प्राचीन ग्रंथों के साथ भारतीय क्षत्रियों के इतिहास व् खनिज धातुओं के अच्छे विशेषज्ञ भी थे.

इसके बाद उन्होंने संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी, इतिहास, राजनीति एवं वेदांत का उचित अध्ययन किया. राव विद्यानुराग, समाज सेवा तथा धार्मिक भावनाओं से ओत-प्रोत होने के साथ-साथ एक उच्च कोटि के क्रांतिकारी नेता भी थे. १६ अक्तूबर १८९७ को उनके पिता राव माधो सिंह के निधन के बाद रावगोपाल सिंह खरवा रियासत के विधिवत शासक बने.

अकाल में खोल दिए थे जनता के लिए खजाने

खरवा के शासक बनते ही राजस्थान में भयानक अकाल पड़ा, हाहाकार मच गया था, उस विषम स्थिति से निपटने के लिए गोपाल सिंह खरवा ने अपने राज्य के खजाने जनता को भोजन उपलब्ध कराने के लिए खोल दिए थे| उनके इस उदार और मानवीय चरित्र की हर तरफ प्रशंसा हुई। उन्होंने शिक्षा का प्रचार-प्रसार भी किया| गांव में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए बालकों को शिक्षा देने के लिए प्रेरित करने हेतु प्रचारक-उपदेशक भेजे।

भारतव्यापी सन १९१४ के क्रांति के प्रमुख आयोजकों में राव भी एक थे| क्रांतिकारी रासबिहारी बोस, सरदार अजीत सिंह, रजा महेंद्र परता, बडौदा नरेश, इंदौर नरेश, बीकानेर नरेश, श्री खुदीराम बोस, श्री केसरी सिंह समेत कई क्रांतिकारी नेता राव के साथ थे| इस क्रांतिकारी संगठन की विशालता कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक थी।

सालों तक जेल में रहे

दुर्भाग्य से एक जयचंद ने सशस्त्र क्रांति की योजना का भंडाफोड़ अंग्रेजों के समक्ष कर दिया गया। फलस्वरूप २९ जून १९१४ को उन्हें नजरबन्द कर दिया गया। इसके बाद में तिलहट के डाक बंगले में अंग्रेजी सरकार ने उन्हें जेल में डाल दिया।

१९२० में रिहा होने के बाद राव को दिल्ली एवं अजमेर मारवाड़ प्रांतीय राजनीतिक परिषद अजमेर का अध्यक्ष बनाया गया| १९३१ के लाहौर अधिवेशन में राव बतीस सैनिक लेकर लाहौर पहुंचे थे| राव गोपाल सिंह गोखले के आदर्श, कर्तव्य तथा ध्येय के प्रति प्रतिबद्धता ने ही उन्हें भारत के राष्ट्र निर्माताओं में उच्च स्थान मिला है। जीवन के अंतिम क्षणों में वो बीमारी से संघर्ष करते हुए १२ मार्च १९३९ को परलोक गमन कर गए।

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