हिरण की रक्षा के लिए सीने पर खाई शिकारी की गोली, ऐसे थे पाली के वीर गंगाराम बिश्नोई

बिश्नोई समाज का पेड़ों और वन्य जानवरों के लिए अथाह प्रेम किसी से छुपा नहीं है। समाज के लोगों ने सदियों से पेड़ों को बचाने के लिए अपना खून बहाया है। इसी इतिहास में जान फूंकने के लिए और गुरु जंभेश्वर भगवान के बताए 29 नियमों का पालन करते हुए 26 अप्रैल 2006 को वीर गंगाराम बिश्नोई (जाणी) ने हिरण की रक्षा में अपने प्राणों की आहूति दी।

गंगाराम बिश्नोई का जन्म 11 जून 1971 को पाली जिले की रोहट के नेहड़ा गांव में स्व. श्री जीयाराम जाणी के घर हुआ। वहीं गंगाराम का विवाह सुखी देवी खिलेरी के साथ हुआ।

निहत्थे होकर बंदूकधारी शिकारियों को दबोच लिया था

गंगाराम बिशनोई राजस्थान पुलिस में कर्त्तव्यनिष्ठ कांस्टेबल थे और आखिरी समय तक डांगयावाश पुलिस थाने में कार्यरत थे। 26 अप्रैल की एक दोपहर वह किसी काम से घर जा रहे थे, तभी गोयलों की ढाणी के पास उन्होंने गोली चलने की आवाज सुनकर अपनी मोटरसाइकिल बिना सोचे-समझे उधर मोड़ ली।

गंगाराम ने देखा कि शिकारी हिरण का शिकार कर अपने कंधे पर उठाकर भाग रहे थे, उन्होंने बिना देर किए शिकारियों को ललकारते हुए एक शिकारी को दबोच लिया

सिपाही गंगाराम निहत्थे थे और शिकारियों के पास थी बन्दूक। ऐसे में एक शिकारी ने उसी समय बन्दूक से उनपर फायर कर दिया और गोली सीधे उनके सीने में लगी। गंगाराम के निधन के बाद चेराई गांव के बीचों बीच हिरण के साथ उनको समाधि दी गई और सरकार ने मरणोपरांत शोर्य चक्र से सम्मानित किया।

बता दें कि गंगाराम भारत के प्रथम व्यक्ति हैं जिन्हें वन्य जीवों की रक्षा के लिए शहीद होने पर यह सम्मान मिला हो। आज भी हर साल चेराई गांव में शहीद स्मारक पर मेला भरता है।

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