त्रिलोक सिंह : सीकर का वो कॉमरेड जिसकी रगों में खून नहीं क्रांति का लावा दौड़ता था  

राजस्थान में और कहीं न कहीं भले मार्क्सवाद की जड़ें उपजी हो या नहीं लेकिन शेखावाटी में मार्क्सवाद ने अपनी जड़ें एक समय में ज़रूर जमाई. इन जड़ों में से कई क्रांतिकारी पौधे निकले उनमें से एक नाम था त्रिलोक सिंह जिनका जन्म 1915 में सीकर जिले के अलपसर गांव में हुआ।

बचपन से ही उनके मन में एक यूनियन बनाने की जो इच्छा थी जो कि आगे जाकर फलित हुई। उनके मन में शुरू से ही क्रांतिकारी चेतना का समावेश हो गया था। एक किस्सा का यहां जिक्र करना चाहते हैं कि जब वे स्कूली दिनों में पढ़ते थे तब मुकुंदगढ़ के ठाकुर की माता जी का निधन हो गया था और स्कूल के अंदर एक शोक सभा का आयोजन किया गया था।

शोक सभा में दो शब्द बोलने के लिए कुछ मेधावी लड़कों को खड़ा किया गया। जब त्रिलोक सिंह का नंबर आया तो उन्होंने अपने अंदर के उद्गार निकाले और बोले किसकी माताजी और कैसा शौक?  उन्होंने समाज के लिए क्या किया जिसके लिए हम उनके लिए श्रद्धांजलि दें? उनके लिए वक्त निकाले। ऐसे तो दुनिया में हमेशा निधन होते रहते हैं, हमारे गांव में भी किसान मरते रहते हैं।

ऐसा सुनकर वहां बैठे लोग चिंतित हो गए और शोक सभा चिंतित सभा में बदल गयी और उन्हें वहां से निकाल दिया गया। उसके बाद में वे विद्यार्थी भवन झुंझुनू में पढ़ने के लिए आ गए।

क्रांतिकारी चेतना के लिए करते थे भागदौड़

समाज में क्रांतिकारी चेतना का समावेश चाहने वाले त्रिलोक सिंह के एक मित्र के पिताजी को जागीरदारों ने रोक लिया। वे उन्हें इसलिए रोकते थे कि उन्हें लगान चाहिए होता था, जब इस बात का त्रिलोक सिंह को पता चला तो त्रिलोक ने एक टोली का नेतृत्व किया और धावा बोल कर किसानों को मुक्त करा लिया। त्रिलोक शेखावाटी किसान आंदोलन से भी जुड़े रहे औऱ फिर शेखावाटी में वामपंथ के एक बड़े लीडर के रूप में उभरे।

राजेंद्र कस्वां एक किताब में लिखते हैं कि – ” कूदन ग्राम में पढ़ते समय मेरा संपर्क श्री बद्रीनारायण सोढानी से हुआ जिनको सीकर का गांधी कहते थे। उन्होंने कहा कि पढ़ाना छोड़ो और देश की आजादी के आंदोलन में आ जाओ। उनकी प्रेरणा से मैं 29 फरवरी 1944 को अध्यापक पद से त्याग पत्र देकर जयपुर प्रजामण्डल में शामिल हो गया। प्रजामण्डल में मेरे साथ माधोपुरा का लालसिंह कुल्हरी था। हम दोनों जनजागृति के लिए रोजना गांव में 24 मील पैदल सफर करते थे।

मैं देश की आजादी के लिए जागीरदारों के ज़ुल्म के खिलाफ सीकर किसान आंदोलन में भाग लेने लगा। सीकर ठिकाने में काश्त की जमीन का बंदोबस्त सन 1941 में हो गया था परंतु लगान व लाग-बाग के नाम पर जागीरदारों की लूट-खसोट बंद नहीं हुई थी। हमने इसका विरोध किया जिसमें त्रिलोक भी शामिल थे।

त्रिलोक सिंह ने मार्क्सवाद-लेनिनवाद का बहुत अध्यन किया, उन्हें जब भी किसान आंदोलनों से वक्त मिलता था तो बहुत सारा अध्ययन करते थे। जून 1946 में रींगस में किसान सभा का आयोजन किया गया और इसमें उन्हें राजस्थान का किसान आंदोलन में सदस्य बनाया गया। सन 1946 में जयपुर राज्य में किसान संगठन आरंभ हुआ त्रिलोक सिंह उसके आगीवाण बने और बराबर उसके काम को आगे बढ़ाते रहे।

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