3 बहनों के पिता के स्वर्गवासी होने के बाद बड़ी बेटी ने ‘रस्म की पगड़ी’ पहनकर पूरी की जिम्मेदारी

किताबों में हमने जरूर पढ़ा कि बेटा-बेटी एक समान होते हैं। सरकारें भी हमेशा कहती कि बेटा-बेटी एक समान लेकिन यह बात कितनी सत्य हो पाई यह हम सभी जानते हैं। लेकिन इस बात का एकदम सही उदाहरण पेश किया राजस्थान के सीकर जिले की लड़की ने। राजस्थान के सीकर जिले के दातारामगढ़ कस्बे की पीलिया की ढाणी बल्लूपुरा में एक ऐसा उदाहरण सामने आया जो समाज में बेटा-बेटी एक समान बात सत्य साबित कर दी।

पीलिया की ढाणी के निवासी भंवरलाल ढाका की 25 अप्रैल को मृ’त्यु हो गई। दरअसल 22 फरवरी 2021 को भंवरलाल ढाका पेड़ की कटाई करते हुए गिरकर घायल हो गए थे। उनका इलाज सीकर के बाद,जयपुर में चल रहा था। लेकिन इलाज के दौरान ही उन्होंने द’म तोड़ दिया। जिसके बाद उनके परिजनों ने अंतिम संस्कार का जिम्मा उठाया और भंवरलाल ढाका का अंतिम संस्कार किया।

लेकिन हिंदू धर्म में एक प्रथा है जिसमें परिवार की मुखिया की मृ’त्यु के बाद रस्म पगड़ी की रस्म निभाई जाती है। जिसमें परिवार के मुखिया के बदले उसके बड़े पुत्र को वह पगड़ी पहनाई जाती है, इसका मतलब यह माना जाता है कि अब परिवार की जिम्मेदारी उस व्यक्ति की है। लेकिन भंवरलाल ढाका की केवल 3 पुत्रियां है, उनके एक भी पुत्र नहीं हैं। इसी को देखते हुए उनकी बड़ी बेटी पिंकी ने यह जिम्मेदारी लेने का फैसला किया। छोटी बहनों की सहमति से पगड़ी रसम को खुद पूरा किया।

भंवरलाल की छोटी बेटी नेहा बताती हैं कि समाज और परिवार जनों से भी उनको इस बात का सहयोग मिला। समाज के लोगों ने भी उनके इस फैसले का स्वागत किया। भवरलाल की बड़ी बेटी ने रस्म पगड़ी की रस्म निभाई और परिवार की जिम्मेदारी लेने का फैसला किया। इस बात का स्वागत उनके समाज आस-पड़ोस व परिवार जनों के लोगों ने भी किया। भंवरलाल की बेटी ने साबित कर दिया कि लड़का लड़की एक समान होते हैं। समाज में उन्होंने एक उदाहरण पेश किया कि बेटे ही नहीं बेटियां भी परिवार की जिम्मेदारियां लेने में सक्षम है।

यह तो सच है बेटी अगर ठान ले तो वह घर क्या देश सब चला सकती हैं।

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