सिद्धपीठ श्री देवीपुरा बालाजी धाम की चमत्कारिक कहानी, दर्शन मात्र से होती भक्तों की इच्छा पूरी

आस्था एक रास्ता है,
आस्था एक विश्वास है।
आस्था एक जीवन दर्शन,
आस्था एक आस है।

अनेक आस्थाओ का केंद्र देवीपुरा बालाजी।
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दोस्तों नमस्कार।

दोस्तों आज मैं आपको सीकर (Sikar) के एक ऐतिहासिक मंदिर में लिए चलता हूं। जहां पर भक्तों की हर इच्छा की पूर्ति होती है, और वहां पर दर्शनार्थियों का मेला हर समय लगा रहता है।

देवीपुरा बालाजी धाम (Devipura Balaji Dham) की विस्तृत जानकारी देते हुए वहां के पंडितजी कहते हैं कि अंदर की साइड में राम और शिव जी की मूर्ति विराजमान है। राम और शिव अलग-अलग समय पर एक ही है। यहां आगे हनुमान जी की मूर्ति विराजमान है। हनुमान जी की मूर्ति के बारे में बताते हुए पंडित जी कहते हैं कि हनुमान जी भाई भी है, पुत्र भी हैं, सखा भी है और भक्त भी है। इसलिए हनुमान जी (Hanuman JI) की मूर्ति बाहर द्वार के पास में है।

महेंद्र से बात करते हुए वहां के पंडित जी कहते हैं कि हनुमान जी का वार मंगल है। इनका जन्म मंगलवार को हुआ था इसलिए यह मंगलमय भगवान है। यह हमेशा मंगल ही करते हैं। शनि ग्रह एक ऐसा ग्रह हैजो कभी शांत नहीं रहता है। तो हनुमान जी महाराज ने शनि की आराधना कर उसको शांत किया था। इसलिए इनका वार शनिवार भी है। जिस दिन हनुमान जी महाराज का मंगलवार को जन्म हुआ था, उस दिन पूर्णिमा थी। इसलिए पूर्णिमा। इनके लिए सबसे उत्तम है।

पंडित जी ने हनुमान चालीसा दिखाते हुए बताया कि सनातन धर्म में सबसे पहले हनुमान चालीसा लिखा गया था। गोस्वामी तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा लिखा था। इससे पहले किसी भी देवता का चालीसा नहीं लिखा गया था।

एक बार का दृष्टांत बताते हुए पंडित जी कहते हैं कि गोस्वामी तुलसीदास (Goswami Tulsidas) को अकबर (Akbar) के दरबार में बंदी बना लिया गया था। तो अकबर ने कहा कि आप कोई चमत्कार दिखाओ। तो वो हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa) का सत बार पाठ करने पर वहां की कैद से बंधन मुक्त हो गए। पंडित जी ने सुंदरकांड के बारे में बताया कि रामचरितमानस में सात कांड हुए है जिनमें से सबसे प्रमुख कांड सुंदरकांड है।

जब सीता हरण हो गया था, तो राम जी बहुत दुखी थे। उस समय सुंदरकांड (Sundarkand) के द्वारा ही सीता का पता लगाया गया। इस सुंदरकांड के अंदर रावण की मृत्यु तथा राक्षसों का सर्व नाश होना बताया गया है। इसी सुंदरकांड के अंदर हनुमान जी का पूरा विवरण प्रस्तुत है। जिसमें सीता का पता लगाना, अशोक वाटिका में सीता का होना, सोने की लंका को जलाना आदि।

प्रमुख मंदिर के पीछे एक छोटा मंदिर है जिसको राम दरबार कहते हैं जो हजारों साल पुराना है जिसमें गणेश जी की मूर्ति, जो विश्व में अपने आप में अलौकिक है, अर्थात सामान्यतः वह कहीं मिलती नहीं है।

हर पूर्णिमा के दिन हजारों की तादाद में श्रद्धालु अपनी मन्नत लेकर आते हैं।हनुमान जी महाराज सबकी मन्नत पूरी करते हैं।दर्शनार्थियों से बात करने पर सब ने अपनी अपनी भाषा में अपनी अपनी मान्यताओं के अनुसार विश्वास पूर्वक बालाजी धाम को आस्था का केंद्र बताया है। साल में एक बार बड़ा मेला लगता है। तथा ज्यादा भीड़ होने पर मंदिर परिसर में भीड़ को कंट्रोल करने के लिए अलग-अलग दरवाजे बनाए गए हैं। जिससे लोगों को तकलीफ नहीं हो।

अपने विचार।
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विश्वास पर यह धरा टिकी,
मत खोना विश्वास।
रिश्ते नाते सब में बसा ये,
सब में है यह खास।

विद्याधर तेतरवाल,
मोतीसर।

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