600 साल पुराना दो जांटी बालाजी धाम इसके पीछे की कहानी जानकर रह जाएंगे दंग

दो जांटी धाम बालाजी मंदिर फतेहपुर : मन की शक्ति और भरोसा, सबसे बड़ा विश्वास है। समझ सको तो समझो भैया, जीने का मंत्र आस है। जंगल में मंगल चमत्कारी बालाजी धाम। दोस्तों नमस्कार। दोस्तों आज मैं आपको एक ऐसे चमत्कारी बालाजी धाम की दास्तान सुना रहा हूं। जिसने कुछ समय में ही जंगल में मंगल कर दिया और जहां पर सब की आस पूरी होती है।

रामगढ़ फतेहपुर सड़क मार्ग पर दो जांटी बालाजी धाम इसका जीता जागता उदाहरण है। कुछ समय पहले तक वहां पर दो विशाल जांटी के वृक्षों के अलावा कुछ भी नहीं था। वह विशाल वृक्ष लगभग पांच सौ छः सौ साल पहले के है।

6 अक्टूबर 1992 : पुजारी जी के कथनानुसार दो जांटी बालाजी धाम की स्थापना 6 अक्टूबर 1992 दशहरा मंगलवार को माननीय भैरों सिंह जी शेखावत और शंकराचार्य जी महाराज के कर कमलों के द्वारा की गई थी। उसी दिन से अखंड ज्योत जल रही है। इससे पहले यहां पर दो जांटी के विशाल वृक्ष थे। जो आज भी विद्यमान है। यहां पर हरियाणा पंजाब और राजस्थान से बहुत भक्त गण आते हैं और अपनी मन्नत पूरी कर जाते हैं। जिस प्रकार से मकान की दहलीज होती है, उसी प्रकार सालासर जाने वाले भक्तगण दो जांटी बालाजी धाम को सालासर की दहलीज मानते हैं। पंडित जी कहते हैं कि लोगों के कहने के अनुसार यहां पर रामगढ़ चूरु रास्ते पर गुजरने वाले प्रत्येक व्यक्ति को कुछ न कुछ आभास होता था। उनको यह महसूस होता था कि यहां पर कुछ है। उन पेड़ों की कटाई छटाई करने वाले व्यक्ति को कुछ नुकसान भी होता था। प्रभु दयाल जी बोचीवाल के पिता जी यहां पर प्याऊ लगाते थे, उनको बहुत फायदा भी होता था।

मंदिर की स्थापना कैसे हुई : प्रभु दयाल जी ने अपने पुत्रों को उस दो जांटी के वृक्षों के पास में प्याऊ लगाने के लिए कहा। उनको आदेश दिया कि वहां पर प्याऊ लगाओगे तो आपको बहुत लाभ होगा। आपकी उन्नति होगी। उनके पुत्रों ने वहां पर प्याऊ लगाने का निर्णय किया। जब प्याऊ लगाने का इरादा पक्का हो गया तो आसपास में पानी नहीं होने के कारण कुआं खोदना पड़ा। जब कुआं खोदने का फाइनल हुआ तो कुएं के पास में बालाजी के मंदिर की स्थापना करनी जरूरी हो गई।

आज वह मंदिर दो जांटी बालाजी धाम के नाम से विश्व विख्यात हो गया है। प्रभु दयाल जी को व्यापार में बहुत अधिक लाभ हुआ और उन्होंने लाभ को मंदिर में ही लगाना शुरू कर दिया। यहां पर सबसे ज्यादा हरियाणा से भक्त गण आते हैं जो अपनी सफेद पोशाक के कारण अलग से ही पहचाने जाते हैं। जो शांति की प्रतीक है।

मेले का आयोजन : यहां पर अक्टूबर मास में दशहरे के समय और चैत्र मास की पूर्णिमा को मेले का आयोजन किया जाता है। जिसमें लाखों श्रद्धालु भारत के कोने-कोने से आते हैं और अपनी मन्नत पूरी करते हैं। यहां का सूर्यरथ जिसमें सात घोड़ों के द्वारा संचालित किया हुआ बताया है आकर्षण का केंद्र है। जिसको चारों तरफ से घूम कर देखने पर वह अपनी तरफ ही दौड़ता हुआ दिखाई देता है।

शिव लिंग : यहां पर शिवलिंग की स्थापना शंकराचार्य जी महाराज के द्वारा रूद्र महायज्ञ करने के उपरांत 1993 में की गई थी। तीनों शंकराचार्य की उपस्थिति में राजस्थान में पहला रुद्र महायज्ञ दो जांटी बालाजी धाम में ही हुआ था। पास में ही एक प्रतिमा प्रह्लाद राय जी बोचिवाल ब्राह्मण फतेहपुर निवासी की है।जिनके द्वारा यहां पर सर्वप्रथम प्याऊ लगाई जाती थी।

अपने विचार : सुंदरता विश्वास में होती, विश्वास होता है अटूट। विश्वास से एक लक्ष्य बनता, अपने लक्ष्य में जाओ जूट।

विद्याधर तेतरवाल, मोतीसर।

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