जमनालाल बजाज जिन्हें कहा जाता था महात्मा गांधी का बेटा, देशसेवा में बिता दिया पूरा जीवन

जमनालाल बजाज का नाम भारत का हर एक बच्चा-बच्चा जानता है, भारत के मशहूर उद्योगपति और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में आज इतिहास में उनका नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।

जमनालाल बजाज का जन्म 9 नवंबर 1889 को ‘काशी का बास’ सीकर, राजस्थान में एक गरीब मारवाड़ी परिवार हुआ था। उनके पिता का नाम कनीराम और माता बिरदीबाई थी। 5 साल की आयु में ही वर्धा के एक बड़े सेठ जमनालाल बजाज की मां से वचन लेकर जमनालाल को गोद ले लिया था।

महात्मा गांधी मानते थे अपना बेटा

13 साल की उम्र में उनका जानकी से विवाह हुआ। जमना लाल गांधीजी के बहुत करीबी थे एवं उनके जीवन से खासा प्रभावित भी थे। गांधी जी उन्हें बेटे की तरह मानते थे। जमनालाल बजाज ने खादी और स्वदेशी को अपनाया और अपने बेशकीमती वस्त्रों की होली जलाई।

गांधी के कई आंदोलनों में रहे शामिल

जमनालाल गांधी की तरफ से चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन, नागपुर झंडा सत्याग्रह, साइमन कमीशन का बहिष्कार, डांडी मार्च और अन्य कई आंदोलनों में सक्रिय तौर पर शामिल रहे। वहीं डांडी मार्च में महात्मा गांधी की गिरफ्तारी के बाद जमनालाल बजाज को भी दो साल के लिए नासिक सेंट्रल जेल में रहना पड़ा।

जमनालाल का सामाजिक एवं साहित्यिक क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान रहा। खादी के उत्पादन और उसकी बिक्री बढ़ाने के विचार से जमनालाल बजाज ने देश के दूर-दराज भागों का दौरा किया ताकि अर्धबेरोजगारों को फायदा पहुंच सके। 1935 में गांधीजी ने अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ की स्थापना की।

इस नए संघ के लिए जमनालाल बजाज ने बड़ी खुशी से अपना विशाल बगीचा सौंप दिया था। 1936 में जमना लाल ने ‘राष्ट्रभाषा प्रचार समिति’ की स्थापना की जिसके कुछ बाद वे हिंदी साहित्य सम्मेलन मद्रास के अध्यक्ष चुने गए।

बजाज ने राष्ट्रभाषा आंदोलन को व्यवस्थित रूप देने की दिशा में काम किया। वह निर्धन परिवार के बच्चों की शादी भी करवाते थे इसी वजह से गांधी स्नेह से उन्हें ‘ शादी काका’ कहते थे।

रियासतों की प्रजा के अधिकारों के थे सच्चे संरक्षक

1931 में जमनालाल के प्रयत्नों के कारण ‘जयपुर राज्य मंडल’ की स्थापना हुई, उन दिनों जयपुर के अंग्रेज दीवान बीकैम्प सेन्टजोंन को जमनालाल की लोकप्रियता पसंद नही थी। अतः एक सरकारी आदेशानुसार सार्वजनिक संस्था की गतिविधियों पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया गया।

जमनालाल बजाज रियासतों में रहने वाली प्रजा के अधिकारों के सच्चे संरक्षक थे और वे अपने जीवन के अंत तक देशी राज्यों में नागरिक स्वतंत्रता के लिए अथक संघर्ष करते रहे। 1918 में सरकार ने जमनालाल बजाज को ‘ रायबहादुर’ की पदवी से अलंकृत किया।

1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह में जेल से रिहाई के बाद जमनालाल वर्धा लौट आए। 11 फरवरी 1942 को मस्तिष्क की नस फट जाने के कारण वर्धा में ही उनकी मृत्यु हो गई जिनकी स्मृति में सामाजिक क्षेत्र में सराहनीय कार्य करने के लिए “जमनालाल बजाज पुरस्कार” की स्थापना की गई।

Add Comment

   
    >