ननद भाभी के झगड़े और जलन से जीण बनी जीण माता का रह’स्य और कहानी

राजस्थान के सीकर जिले के दक्षिण में 29 किमी दूर स्थित जीण माता धाम एक पवित्र स्थल है । लोकमान्यताओं के अनुसार जीण माता का जन्म चौहान वंश में गंगोसिंह जी के घर हुआ था । गंगोसिंह जी चुरू जिले में स्थित घांघू रियासत के राजा थे । संतान सुख की चाह में वे अरावली पर्वतमाला में स्थित कपिल मुनि के आश्रम गए एवम् तपस्या की ।

कपिल मुनि ने उन्हें एक पुत्र तथा एक पुत्री का वरदान दिया ।

पुत्र का नाम हर्ष तथा पुत्री का नाम जीवण रखा । बचपन से जीवण और हर्ष बहुत प्यार से रहा करते थे । हर्ष की शादी के बाद एक बार जीवण का अपनी भाभी से विवाद हो गया और इसी विवाद चलते जीवण हर्ष से नाराज हो गई ।इसके बाद जीवण अरावली पर्वतमाला की “काजल शिखर” पर तपस्या करने लगी । लोकमान्यताओं के अनुसार जीण माता , जयंती माता की पूजा करती थी और अंत में उन्ही की मूर्ती में समाहित हो गई । यह मंदिर आठवीं सदी में निर्मित हुआ था । माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण चौहान शासकों ने करवाया था । यह मंदिर रेवासा झील के पास स्थित है ।

यहां चैत्र एवम् अश्विन नवरात्रों में दो बार बहुत बड़े मेले का आयोजन होता है । जीण माता के मंदिर के कपाट कभी बंद नहीं होते । ग्रहण में भी मां भवानी की आरती समय पर की जाती है । माताजी को मदिरा का भोग भी लगाया जाता था जिसको मां बड़े चाव से स्वीकार करती है । सन् 2001 के बाद मंदिर परिसर में पशुबली तथा मदिरा का भोग नहीं लगाया जाता।अब माता की वैष्णव रूप में पूजा की जाती है ।

जीण माता के मुख्य अनुयायियों में राजपूत, मीणा , गुर्जर तथा अग्रवाल समाज शामिल हैं।मुगल सम्राट औरंगजेब ने माताजी के मंदिर पर चढ़ाई करने का प्रयास किया था। पुजारियों द्वारा बुलाने पर माताजी भैरों की सेना छोड़ दी (एक मक्खी परिवार की प्रजाति) जिसने सम्राट की सेना को घुटनों पर ला दिया । इससे प्रभावित होकर औरंगजेब ने अपने दिल्ली महल से अखण्ड तेल का दीपक दान किया ,जो आज भी माताजी के मंदिर प्रज्वलित है ।

जीण माताजी का मंदिर शुरुआत में एक तीर्थ यात्रा था और कई बार इस तीर्थ स्थान का पुनर्निर्माण किया गया। एक कथा प्रसंग मान्यता है जो सदियों से लोक में प्रचलन है कि चुरु के एक गांव घांघू में राजा गंगोसींघजी ने इस शर्त पर ऊर्वशी (अप्सरा) से शादी कर ली और शादी की थी कि वह अपने महल में पूर्व सूचना के बिना नहीं जाएंगे। राजा गंगोसींघजी को एक पुत्र मिला जिसे हर्ष कहा जाता था और एक बेटी जीवण थी। कहते हैं कि फिर उसने कल्पना की लेकिन मौके के तौर पर यह राजा गंगोसींघजी अपने पूर्वजों को बिना बताए महल में गये और इस प्रकार उन्होंने अप्सरा से जो प्रतिज्ञा की थी उसका का उल्लंघन किया।

तुरन्त उसने राजा को छोड़ दिया और अपने बेटे हर्ष और बेटी जीवण से भाग कर भाग लिया, जिसे वह उस जगह पर छोड़ दिया जहां वर्तमान में मंदिर खड़ा था।इस जगह पर दो बालकों ने खूब तपस्या का अभ्यास किया।हालांकि बाद में एक चौहान शासक ने उस जगह पर मंदिर बनाया। इस मंदिर में अनगिनत चमत्कार देखें व महसूस किए जाते हैं। रोज सुबह माई को मदिरा का भोग लगाया जाता है और बडे चाव से मैया उसको स्वीकार करती है। मदिरा भोग लगाते ही गायब हो जाता है और आज तक किसी को पता नहीं चला कि मदिरा जाता कहा है।मीठे चावल का भोग भी जीण माता को लगाया जाता है।

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