करोड़ों की आस्था के प्रतीक वीर बर्बरीक खाटू श्याम, बदल सकते थे महाभारत के यु’द्ध का नतीजा

राजस्थान के सीकर जिले में प्रसिद्ध वीर बर्बरीक खाटू श्याम करोड़ों लोगों की आस्था के प्रतीक है। हर साल यहां भरने वाले मेले में देश के कोने-कोने से श्रृद्धालु आते हैं। खाटू श्याम मंदिर से जुड़े कई किस्से आपने सुने होंगे लेकिन आज हम आपको उस पावन धरती का इतिहास बताएंगे जहां भगवान कृष्ण ने खाटू श्याम का शीश दान मांगा था। जी हां, हम बात कर रहे हैं हरियाणा के कुरुक्षेत्र से कुछ किलोमीटर पहले मौजूद चुलकाना में स्थित वीर बर्बरीक श्याम मंदिर की जो दिल्ली से लगभग 80 किलोमीटर दूर है।

माना जाता है कि यहां पर भगवान कृष्ण ने वीर बर्बरीक का शीश मांगा था और उन्हें अपना श्याम नाम दिया था। आइए मंदिर के इतिहास पर एक नजर डालते हैं।

झलको राजस्थान ने मन्दिर के पुजारी देवेंद्र से खास बातचीत की जहां उन्होंने मन्दिर के इतिहास पर विस्तार से बताया।

महाभारत काल से जुड़े हैं इतिहास के तार

चुलकाना श्याम मंदिर के इतिहास के बारे में बात करें तो महाभारत के युद्ध के दौरान वीर बर्बरीक भी यु’द्ध में जाना चाहते थे। बताया जाता है कि वीर बर्बरीक के पास तीन बाण थे जिनसे वह 3 लोक को खत्म कर सकते थे। जिस वक्त वीर बर्बरीक महाभारत का यु’द्ध लड़ने के लिए कुरुक्षेत्र जा रहे थे उस दौरान रास्ते में चुलकाना की धरती पर भगवान कृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण कर बर्बरीक से शीश दान मांग लिया था।

यु’द्ध में जाने से पहले मां को दिया वचन

वीर बर्बरीक की माता का नाम अहलवती था। बताया जाता है कि बर्बरीक ने यु’द्ध पर जाने से पहले अपनी मां को वचन दिया था कि वह यु’द्ध में हारे हुए का साथ देंगृ, यानि महाभारत के यु’द्ध में जो अगर कौरव हारेंगे तो कौरव का साथ और अगर पांडव हारते तो वह पांडवों का साथ देते।

भगवान कृष्ण ने मांग लिया था शीश दान

वीर बर्बरीक जब अपनी मां का आशीर्वाद लेकर यु’द्ध लड़ने के लिए निकले तो भगवान कृष्ण ने उन्हें चुलकाना की धरती पर रोक लिया था। बताया जाता है कि कृष्ण जानते थे कि अगर वीर बर्बरीक ने कौरवों का साथ दिया तो पांडव हार जाएंगे। ऐसे में भगवान कृष्ण ने वीर बर्बरीक को ब्राह्मण के वेश में आकर चुलकाना की धरती पर रोक लिया। वीर बर्बरीक ब्राह्मण के वेश में भगवान कृष्ण को पहचान नहीं पाए थे।

ब्राह्मण वेश धारी भगवान कृष्ण ने वीर बर्बरीक से यु’द्ध में जाते समय पूछा कि तुम्हारे पास क्या कला हैं वह कला दिखाओ। जिसके बाद वीर बर्बरीक ने कहा कि मैं एक पूरे युग को अपने एक बाण से खत्म कर सकता हूं जिसके बाद वीर बर्बरीक ने कला का प्रदर्शन किया और अपने बाण से वहां लगे पीपल के पत्तों में एक तीर से छेद कर दिया।

ब्राह्मण वेश धारी कृष्ण ने दिखाया असली स्वरूप

इसके बाद ब्राह्मण वेश धारी कर चुके भगवान को वीर बर्बरीक ने कहा कि आपने मेरी कला का प्रदर्शन करवाया है मैं आपको खाली हाथ नहीं लौटना चाहता। आप कुछ भी मांग सकते हैं। इसके बाद भगवान कृष्ण ने वीर बर्बरीक से उनके शीश का दान मांग लिया था। बताया जाता है कि वीर बर्बरीक ने ब्राह्मण देवता से वादा कर दिया कि मैं अपने शीश का दान दूंगा, लेकिन वीर बर्बरीक ने हाथ जोड़कर निवेदन किया कि आप मेरे शीश का दान मांग रहे हैं यानी आप कोई सामान्य ब्राह्मण नहीं है। अपने असली स्वरूप में आइए।

जिसके बाद भगवान कृष्ण ने वीर बर्बरीक को अपना असली स्वरूप दिखाया और वीर बर्बरीक ने हाथ जोड़कर नमन करते हुए भगवान का आशीर्वाद लिया। भगवान कृष्ण के मांग के स्वरूप वीर बर्बरीक ने उन्हें अपना शीश का दान दे दिया था। लेकिन वीर बर्बरीक ने उस वक्त एक मांग की थी कि उन्हें यु’द्ध देखने की इजाजत दी जा सके, जिसके बाद कृष्ण भगवान ने वीर बर्बरीक के शीश को कुरुक्षेत्र की यु’द्ध भूमि की एक पहाड़ी पर रख दिया था।

महाभारत के यु’द्ध का किया फैसला

माना जाता है कि कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद यह बहस छिड़ गई थी कि यु’द्ध किसने जीता। सभी ने जाकर वीर बर्बरीक से पूछा कि यु’द्ध में कौन जीता और किसकी वजह से जीता, तब वीर बर्बरीक ने बताया कि ना तो पांडव जीते, ना कौरव जीते यु’द्ध केवल भगवान श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र जीता।

दिया नाम श्याम, बने हारे के सहारे

वीर बर्बरीक को भगवान श्री कृष्ण ने अपना नाम कुरुक्षेत्र के यु’द्ध के बाद ही दिया था। वीर बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण से उनका सावला रंग मांगा था। लेकिन भगवान कृष्ण ने वीर बर्बरीक को सांवले रंग के साथ अपनी 16 कलाएं और अपना श्याम नाम दिया था। भगवान कृष्ण ने उस वक्त वीर बर्बरीक से कहा था कि कलयुग में जब भी कोई अपने जीवन से हार कर तुम्हें पुकारेगा तब तुम उनका साथ दोगे, तभी से श्याम बाबा को हारे का सहारा कहा जाता है।

चुलकाना में आज भी है पत्तों मे छेद

चुलकाना की धरती पर स्थित वह पीपल का पेड़ आज भी मौजूद है जिस पर वीर बर्बरीक ने अपनी प्रतिभा दिखाई थी। चुलकाना की धरती पर मौजूद उस पेड़ में आज भी सभी पत्तों में छेद होता है। लोग मन्नतें मांगते हैं, धागा बांधते हैं और बताया जाता है कि भगवान सबकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

वहीं चुलकाना गांव के नाम के पीछे भी एक इतिहास है। आपको बताएं तो इस गांव में सतयुग के समय चलकट ऋषि नाम से एक तपस्वी हुए थे जिनकी इस गांव में समाधि है।

मंदिर में रोज आते हैं हजारों श्रद्धालु

चुलकाना की धरती पर मौजूद श्याम मंदिर में आज भी अनेकों भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं वहीं यहां फागुन के महीने में मेला भरता है जिस दौरान मंदिर में सबसे ज्यादा भीड़ देखी जा सकती है। इस मंदिर में पुजारी जी बताते हैं कि मंदिर में लोग अपनी मन्नतों को लेकर आते हैं और भगवान श्याम उनकी हर मन्नत को हर इच्छा को पूरी करते हैं।

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