रेवासा धाम के अग्रदेवाचार्य महाराज के अद्भुत चमत्कार से बदला तूफान का रुख, अकबर ने किया प्रणाम

चमत्कार विश्वास का, और विश्वास में हो दम।
वाणी कर्म सत्कर्म जहां, वहां रहते सब हम।

दोस्तों नमस्कार।

दोस्तों आज मैं आपको एक ऐसे सिद्ध पुरुष की कहानी बताने जा रहा हूं। जिसने अपनी भक्ति के द्वारा खारे पानी को मीठे पानी में बदला। खुशबू से बात करते हुए वहां पर विराजमान शिष्य ने बताया कि आज से पांच सौ वर्ष पहले की बात है कि श्री अग्रदेवाचार्य जी महाराज ने गलताजी से यहां आकर रेवासा धाम में अपना डेरा जमाया। उस समय रेवासा धाम में खारे पानी की झीले होने के कारण चारो तरफ खारा पानी था।

अग्रदेवाचार्य जी महाराज के पास आकर लोगों ने विनती की कि महाराज आप यहां आए हो लेकिन हमारी हालत यहां खारे पानी की वजह से बहुत खराब है। इसलिए आपकी यदि कृपा हो जाए तो हमारा जीवन खुशहाल हो जाए। तब महाराज जी ने अपने चिमटे से जमीन में धक्का मारा और मीठे पानी की धारा निकली। तब से आज तक रेवासा धाम के लोग मीठा पानी पीकर खुशहाल है।

भक्तमाल ग्रंथ की रचना यहीं पर हुई थी। अग्रदेवाचार्य जी महाराज मानसी पुरुष थे। ठाकुर जी की पूजा मानसी रूप में करते थे। उनके एक शिष्य थे नाभा दास महाराज, जो हमेशा गुरुदेव की सेवा में लगे रहते थे। मानसी सेवा का मतलब हकीकत में वह काम करना होता है।

हकीकत चमत्कार।
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एक बार की बात है की अग्रदेवाचार्य जी महाराज का एक शिष्य समुद्री यात्रा कर रहा था। वह तूफान में फंस गया और डूबना निश्चित हो गया। उसी समय उन्होंने गुरुजी का सुमिरन किया तो गुरु जी उस समय मानसी सेवा में लगे हुए थे। ठाकुर जी को मालूम पड़ गया कि हमारे भक्त का शिष्य फंस गया है। तो उन्होंने अग्रदेवाचार्य जी का शिष्य जो पंखा झल रहा था, उस पंखे से इस प्रकार फटकार लगवाई कि तूफान का रुख बदल गया और वह बच गया।

पंखा जोर से फटकारने से नाभा दास जी महाराज को मालूम पड़ गया और उन्होंने अग्रदेवाचार्य जी महाराज को कहा कि आपका शिष्य बच गया है। ठाकुर जी की गर्दन में दर्द हो रहा है आप माला पहना दो। उस समय अग्रदेवाचार्य जी महाराज ने नाभा दास जी को कहा कि आपको कैसे मालूम पड़ा। तो उन्होंने कहा कि आप ठाकुर जी की सेवा में लगे हुए थे इसलिए ठाकुर जी के आदेश से मुझे मालूम पड़ा है।

ऐसा होने के बाद में अग्रदेवाचार्य जी महाराज ने नाभा दास जी को आदेश दिया कि भारत के सभी संत महापुरुषों का चरित्र लिखो। भगवान को भक्तों का चरित्र बहुत पसंद होता है। तब भक्तमाल ग्रंथ उस समय यहां पर लिखा गया था।

एक बार जयपुर नरेश महाराजा मानसिंह अग्रदेवाचार्य जी महाराज से मिलने के लिए आए। वो अपने दस हजार सैनिकों के साथ में थे। उस समय राजमहल की सभी रानियां रेवासा धाम की ही शिष्या थी। गुरुजी उस समय मानसी सेवा में लगे हुए थे। तो महाराजा मान सिंह जी सीधे गए और साष्टांग प्रणाम किया। और बहुत ही प्रसन्न हुए। गुरु जी ने दस केले नाभा दास जी को दिए और कहा कि सभी सैनिकों में दस दस केले बांट दो। तो नाभा दास जी ने सभी सैनिकों में दस दस केले बांट दिए और दस बचा कर वापस ले आए। ऐसे सिद्ध पुरुष थे अग्रदेवाचार्य जी महाराज।

जब अकबर मिल जाए।
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राजा मानसिंह ने अग्रदेवाचार्य जी महाराज के बारे में राजा अकबर को बताया तो महाराजा अकबर भी उनसे मिलने के लिए आए। उनके साथ में एक सिद्ध पुरुष मौलवी भी था। वह अपनी सिद्धि से कुए के ऊपर बैठकर प्रणाम करने लगा। अग्रदेवाचार्य जी महाराज ने उसके जवाब में अपने आसन को हवा में फेंका और 20 फुट ऊपर आकाश में हवन कुंड करने लगे। तब महाराज अकबर ने साष्टांग प्रणाम किया और कुछ भी मांगने के लिए कहा।

तब अकबर ने रेवासा धाम से लेकर गोरिया तक की पूरी जमीन रेवासा धाम पीठ के लिए दान कर दी। गायों की देखभाल के लिए उस स्थान का नाम तभी गोरिया पड़ा था। इस समय गद्दी पर डॉक्टर राघवाचार्य जी महाराज विराजमान है। यहां पर निशुल्क वेद और उपनिषद की पढ़ाई करवाई जाती है।

” जय झलको जय सीकर।”

अपने विचार।
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चाल चलन और चरित्र बड़ा,
उस से बड़ा न कोई।
जीवन उसी पर टिका हुआ,
होनी हो सो होय।

विद्याधर तेतरवाल,
मोतीसर।

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