काली बाई और नाना भाई खांट जिन्होंने स्कूल चलाने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी

दक्षिण राजस्थान आदिवासियों का गढ़ है और इसी क्षेत्र के जिले बांसवाड़ा के एक गांव रास्ता पाल के बारे में कुछ रोचक इतिहास आज हम आपको बताएंगे जहां आजादी के पहले जीवन की कल्पना करना भी मुश्किल था।

ऐसे में अगर हम आपको कहें कि वहां उस समय स्कूल थी तो एक बार के लिए आप यकीन नहीं करेंगे लेकिन यह सच है. रास्ता पाल की पाठशाला को प्रजामंडल चलाते थे और मंडल के सदस्य नानाभाई खाट थे जो एक स्वतंत्रता सेनानी थे।

आदिवासियों में चेतना पैदा करने वाले नानाभाई

नानाभाई खाट आदिवासी इलाकों में जागरूकता लाने का काम करते थे, वहीं आसपास के आदिवासी बालक-बालिकाओं को अध्ययन के लिए प्रोत्साहित करते थे, लेकिन अंग्रेजों को यह कहां मंजूर होता, उन्होंने तत्कालीन डूंगरपुर महारावल को स्कूल के बारे में शिकायत कर दी। डूंगरपुर महारावल ने रास्ता पाल को बंद करने के लिए एक फरमान जारी किया जिसे पाठशाला के संस्थापक ने नहीं माना और पाठशाला को जारी रखा।

1947 की 1 जून की सुबह जब महारावल के लोग पाठशाला बंद कराने के लिए पहुंचे तो नाना भाई ने पाठशाला बंद करने से इंकार कर दिया, पुलिस ने नाना भाई के साथ मारपीट की और इस दौरान घायल अवस्था में एक गोली लगने से उनकी मौत हो गई।

अपनी स्कूल के लिए अंग्रेजों से भिड़ गई कालीबाई

इस दौरान स्कूल के एक अध्यापक सेंगाभाई को पुलिस ने ट्रक से बांधकर घसीटना शुरू कर दिया, यह जुल्म 13 साल की बालिका काली बाई से नहीं देखा गया।

काली बाई खेत में भी काम करती थी तो वह हाथ में दंराती लिए दौड़ी और अपने शिक्षक की कमर से बंधी रस्सी को दंराती से काट डाला लेकिन जुल्म का पर्याय बन चुकी अंग्रेजी सरकार ने काली बाई को गोलियों से छलनी कर दिया। अपने गुरु को बचाने के प्रयास में कालीबाई ने 20 जून 1947 को आखिरी सांस ली, मूल गांव में काली बाई की स्मृति में एक स्मारक बना हुआ हैं और डूंगरपुर में गेप सागर के किनारे एक पार्क में कालीबाई की मूर्ति लगी हुई है।

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