बस्तियों में कूड़ा बीनने वाले बच्चों को पढ़ाती है विमला दादी, 1000 बच्चों का जीवन कर चुकी है रोशन

अगर आप समाज में बदलाव लाना चाहते हैं, किसी का भला करना चाहते हैं तो उम्र और पैसे की कमी आपके आड़े नहीं आ सकती है। इस बात को साबित करती है 66 साल की विमला कुमावत जो पिछले 18 साल से कूड़ा बीनने वाले बच्चों में ज्ञान का दीपक जला रही है।

विमला अभी तक करीब 1000 बच्चों की जिंदगी में रोशनी ला चुकी है। सेवा भारती के संत पुरुष धनप्रकाश त्यागी से मिली प्रेरणा को आज वह सालों से निभा रही है।

5 बच्चों को पढ़ाने से शुरू हुआ सफर

विमला कम पढ़ी-लिखी हुई है ऐसे में शुरूआत में वह पढ़ाने में हिचकती थी लेकिन उसके बाद वह  सफाई कर्मियों की बस्ती में गई तो उनके बच्चों के हालात देखकर वह उन्हें पढ़ाने की कोशिश करने लगी, धीरे-धीरे कई माता-पिता भी पढ़ाने के लिए अपने बच्चों को उनके पास भेजने लगे। विमला ने अपने सफर की शुरूआत 26 जनवरी 2003 में महेश नगर की गणेश कॉलोनी से की जहां वह सिर्फ 5 बच्चों को पढ़ाती थी।

जब गुरु ने छूए विमला के पांव

विमला बताती है कि एक बार वह बस्ती में अपने बच्चों को इस लग्न से पढ़ा रही थी कि उन्हें किसी के आने का एहसास ही नहीं हुआ कि अचानक से उनके गुरू जी आ गए और उन्हें बच्चों को पढ़ाते हुए देखते रहे। विमला को इस तरह पढ़ाता हुआ देखकर उनके गुरू ने उनके पांव छू लिए।

विमला के यहां पढ़ने वाले बच्चे उन्हें प्यार से दादी कहते हैं। वहीं दादी के यहां पढ़ने वाले बच्चों में आज नर्सिंग ट्रेनिंग, मेडिकल की तैयारी, प्रिंटिंग टेक्नॉलोजी, स्टेनोग्राफर की तैयारी, प्रतियोगिता परीक्षा, बैंक आदि की तैयारी कर रहे हैं।

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