जॉन गुज़लोवस्की की कविताएँ, अनुवादक : देवेश पथ सारिया

१. मेरी माँ के बाल
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माँ के बाल भूरे नहीं है, न ही सफ़ेद
उनका रंग दुख का रंग है
मृत्यु द्वारा धोयी हड्डियों का रंग

वह अपने बाल काढ़ती है
कोई सुकून नहीं मिलता इससे उसे

उसे याद आता है
कभी उसकी माँ काढ़ती थी
उसके बाल
और चोटी बनाती थी

प्रेम था उसे
अपनी गर्दन पर
माँ की छुअन से
माँ की गंध से

उसे याद है
उसकी माँ के मुंह पर गोली मारने के बाद
किस तरह सैनिकों ने उसकी माँ को लातें जड़ी

लहूलुहान हो गया था फर्श
लहूलुहान हो गए थे उसके बाल

२. 1970 का दशक
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लंबे समय तक मैं खोया रहा, मुझे पता था कि मुझे शिकागो से बाहर निकलना होगा, और मैंने ऐसा ही किया।

मुझे इंडियाना के एक कॉलेज में दाखिला मिल गया, मुझे नहीं पता था कि ड्रग्स क्या बला है, और मैं एक डॉरमेट्री में रहने लगा, बिना कॉफी और बहुत अधिक शराब के।

और मैं दिन भर पढ़ता रहता था बेलो और शेक्सपियर और मिल्टन और पिन्चाॅन और डिकिंसन और वाइटमैन और इलियट और पिन्चाॅन को और रात में पिनबॉल खेलता।

मैंने लड़कियों से दूरी बनाए रखी, जब तक मैं लिंडा से नहीं मिला।

३. एक यात्री के लिए इकूयू की सलाह
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यदि तुम्हें मालूम नहीं
कहां जा रहे हो तुम
तुम्हें शीघ्र चलना चाहिए

तुम्हें मालूम है अगर
कहां जा रहे हो तुम
तुम्हें धीरे चलना चाहिए

४. मेरे लोग
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मेरे लोग
सब ग़रीब लोग थे
उनमें से कुछ जीवित बच गए
मेरी आंखों में झांकने
और मेरी उंगली छूने के लिए
और कुछ नहीं बचे
वे मर गए बुखार, भुखमरी
या चेहरे में धंसी गोली से
वे मर गए ख़ुद को दिलासा देते हुए
कि उनकी मौत के बदले जन्म हुआ
मेरा या किसी और बच्चे का

ऐसी ही कुछ कहानियां सुनाते हैं
ग़रीब लोग सांत्वना के तौर पर
वे इस तरह जुटाते हैं ताक़त
अपनी कब्र से रेंगकर निकलने की

उन सभी में पर्याप्त ताक़त नहीं थी
पर कुछ में ज़रूर थी
और इसीलिए मैं यहाँ हूँ
और तुम पढ़ रहे हो
उनके बारे में कविता यह
क्या था जो उन्हें ताक़त देता था?
ताक़त शायद उन लोगों की आत्मा में थी

वे लोग सिफ़र से शुरुआत करते हैं
और सिफ़र पर अंत होता है उनका
और होती है जीवन यात्रा उनकी
एक सिफ़र से दूसरे सिफ़र की

वे डटे रहते हैं
बर्फ़ और दुख के आतंक के बावजूद
बने रहते हैं बारिश में
जब तक कि कोई घोंप नहीं देता
उनके पेट में संगीन

जब तक कोई बीमारी
उन्हें जकड़ नहीं लेती
वे चलते रहते हैं
भले ही सीढ़ी में फट्टे ना हों
भले ही कोई सीढ़ी ही ना हो

कवि परिचय:

अमेरिकन-पोलिश कवि, उपन्यासकार जॉन गुज़लॉवस्की नाज़ी यातना कैम्प में मिले माता-पिता की संतान हैं। उनका जन्म जर्मनी के एक विस्थापित कैम्प में हुआ।जॉन गुज़लॉवस्की की कविताएं रैटल, नार्थ अमेरिकन रिव्यु, बारेन एवं अन्य जर्नलों में प्रकाशित हैं। उनके कई उपन्यास एवं कविता संग्रह प्रकाशित हैं।वे अमेरिका के सबसे पुराने पोलिश दैनिक अखबार जीनिक ज़्वियाज़कोवी के लिए स्तम्भ लिखते हैं।

अनुवादक:

देवेश पथसारिया राजस्थान के अलवर जिले से संबंध रखते हैं।उनका गद्य, कविताएँ, अनुवाद, पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं।वे फिलवक्त ताईवान में रहते हैं।

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