वसु गंधर्व की कविताएँ

1. संगीत
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वो एक अक्षुण्ण फुसफुसाहट थी
जो उसके कानों से होते
गुजरते उसकी आंखों के खालीपन से
उसके हृदय की रेत में धंसते भीतर
और उसकी देह के अंधेरे जंगल में
दुर्गंध और वासनाओं के पोरों से होते
उसके रंध्र-रंध्र में हुई व्याप्त

उसके बाल हो गए सफेद
अंधेरों और उजालों की परतों को लपेटे
वह भटकता रहा अपने एकांत के भीतर

संगीत आंतरिक से
किसी पुराने जख्म सा फूटा बाहर
किसी दीमक सा कुरेदता गया
उसकी स्मृतियों के भुसभुसे पन्नों को

छोड़ गया एक खोखली देह
भरने को ऋतुओं के असंबद्ध गान

छोड़ गया एक देह
जिसमें किसी सांप सा रेंगता था धीमे से
अपने उद्गम का मिथक।

2.आगमन
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जब आग के हाथ बेच चुके होगे
अपना सबकुछ
देह के आधे हिस्से के बदले में मिलती होगी
बचे हिस्से भर की नींद
अस्तित्वमान होने के कथ्य को उकेरने के लिए
दी जाती हो बस मृत्यु की भाषा
जीभ के गर्म रक्त को
धधकते कागज पर टपकाने के सौदे में मिलता हो
एक बूंद जल

तब इस राख और कोहरे से ढंके
जर्जर में प्रवेश करना
तलाश लेना अपने हिस्से की
सदियों से बची नींद
और अपनी नग्न अपूर्णता को ढंकने भर झूठ

यह द्वार खुला है तुम्हारे लौटने की प्रतीक्षा में
भले ही यह प्रतीक्षा अनंत हो
और तुम्हारी लौटने के बात
एक मिथक।

3.नाम
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नाम किसी पुरानी बंदूक से चली गोली से
मिट्टी की जर्जर दीवार पर बना
एक सुराख है

इकतीस किटकिटाते दांतो के बीच
हवा की किटकिटाहट भर
एक दांत की खाली जगह
जहां से आर पार होता है प्रकाश

ज्यों कोई पुकारता है
जैसे अंधेरे कमरे में भरने लगती है
किसी की आंखों से झरती क्षीण रोशनी

ऐसे ही आती हैं ऋतुएँ
देह में लपेटे श्वेत चादर के उजास से
बिखेरते परागकण
और आती हैं दिशाएं
और यात्राओं के असंभावित गंतव्य

ऐसे ही आती है बंदूक की एक गुमशुदा गोली
और एक बिना चेहरे का नाम।

4.समाप्त कथा
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यहीं समाप्त होती है कथा
कोई वाक्य नहीं कहा जाना है आगे
कोई प्रतिक्रिया नहीं होनी है
इस चुप्पी के बरक्स

वृक्ष इतने शांत
कि किसी बूढ़े की बहुत पुरानी कथाओं में
सजे से लग रहे हों
और रीते पात्र में गिरता वर्षाजल का संगीत
जैसे बह रहा हो संध्या की देह में
जिसे सुनकर उदास हो जाता हो मन

इसी वृक्ष की टहनी पर
प्रतिध्वनित होती
रास्ता बताते किसी मिथकीय तोते की आवाज

इसी एकांत के जलाशय से निकलेगा
बूढ़ा चांद

इसी अकेली डाल पर
नींद से जागेगा रात का पहला पक्षी

इसी आकाश की विक्षिप्तता में
चमकेगी एक नई कथा।

5. एकांत का वृक्ष
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यह वृक्ष के नीचे छितरा
एकांत नहीं
यह वृक्ष ही एकांत है

इसकी पत्तियां झरतीं शाश्वत
इसकी टहनियों से रिसता
नितांत अकेलेपन का गीत
जिसकी लय में प्लावित हो जातीं
तुम्हारी सारी प्रतीक्षाएँ
तुम्हारी कविताएं
तुम्हारा आसपास

इसके सूखे कड़कड़ाते पत्तों से चलकर ही
उतरता पतझर
और फैल जाता
तुम्हारी रात के सीने में

रात
जो पसरी रहती देर तक
इसकी छाँह में।

परिचय:

वसु गंधर्व की उम्र के हिसाब से उनकी कविताएँ आश्चर्य में डालती है।वे रायपुर में रहते हैं। उम्र बीस वर्ष है, बी.ए. द्वितीय वर्ष में पढ़ रहे, कविताओं के अलावा संगीत में भी रुचि है, वर्तमान में वे पं. अजय चक्रवर्ती से शास्त्रीय गायन भी सीख रहे।

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