पिछले 30 साल से इस गांव की पहचान है तिरंगा, हर घर में मिलते हैं तिरंगा बनाने वाले कारीगर

आजादी के बाद से जब भी दुश्मन ने हमारी तरफ आंख उठाकर देखा है तो देश के तिरंगे के सम्मान में हर सैनिक ने मजबूती से उसका सामना किया है, हर सैनिक अपनी जान देने के लिए हमेशा तैयार रहा है।

तिरंगा महज तीन रंगों का एक नाम नहीं है, यह देश की शान है। मां भारती के वीर जवान मर मिट सकते हैं लेकिन देश के तिरंगे को कभी झुकने नहीं दे सकते हैं, लेकिन आज हम आपको उत्तर प्रदेश के महराजगंज जनपद के फरेंदा कस्बे के गांधी आश्रम के बारे में बताएंगे जहां अधिकांश आबादी तिरंगा निर्माण से अपनी आजीविका चलाती है।

सालो भर बनते हैं तिरंगे झंडे

फरेंदा के गांधी आश्रम में बनने वाले झंडें देशभर के अलग-अलग शहरों में जाते हैं। वहीं स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस के मौके पर यहां आने वाली डिमांड काफी बढ़ जाती है। यहां बनने वाले झंडे लखनऊ, बुलंदशहर, आगरा, आजमगढ़, मऊ, बलिया, गोरखपुर, संतकबीरनगर, बस्ती, कुशीनगर, देवरिया सहित प्रदेश के कई जिलों में भेजे जाते हैं।

तिरंगा बना कर चलती है कितने ही परिवारों की रोजी-रोटी

बता दें कि फरेंदा के लगभग अधिकतर परिवार तिरंगा बनाने के कारोबार से जुड़े हुए हैं। यहां हर घर में आपको तिरंगे के कारीगर मिल जाएंगे जिनकी आमदनी का जरिया यहां बनने वाले तिरंगे ही है जो यह काम पिछले 30 सालों से कर रहे हैं।

वहीं आश्रम में बनने वाले तिरंगों को बनने के बाद अकबरपुर में रंगाई के लिए भेजा जाता है, जिसके बाद साइज के हिसाब से इन तिरंगों की कीमत तय की जाती है।

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